Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
के समान द्वीन्द्रिय में उत्पन्न होने के विषय में भी जानना चाहिए तथा पृथ्वीकायिक जीव का बेइन्द्रिय के साथ जो संवेध कहा गया है, वही अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के साथ कहना चाहिए। अर्थात् — पहले, दूसरे, चौथे और पांचवें, गमक में उत्कृष्ट संख्यात भव और शेष पांच गमकों में उत्कृष्ट आठ भाव जानने चाहिए। कालादेश से पृथ्वीकायिकादि की जो स्थिति हो, उसे द्वीन्द्रिय की स्थिति के साथ जोड़ कर संवेध जानना चाहिए। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों के साथ द्वीन्द्रिय से पूर्वोक्तवत् सभी गमकों में उत्कृष्ट आठ-आठ भव होते हैं । '
१.
॥ चौवीसवां शतक : सत्तरहवाँ उद्देशक समाप्त ॥
(क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८३४ (ख) भगवती (हिन्दी विवेचन) भा. ६. पृ. ३११०