Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-२०]
[२४१ ५५. एवं जाव थणियकुमारे। [५५] इसी प्रकार (सुपर्णकुमार से लेकर) स्तनितकुमार तक जानना चाहिए।
विवेचन–स्पष्टीकरण-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न होने वाले असुरकुमारादि देवों के लिए वक्तव्यता में पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले देव यावत् ईशान देवलोक के देवों का अतिदेश किया गया है, इसका कारण यह है कि ईशान देवलोक तक के देव ही पृथ्वीकायिकादि में उत्पन्न होते हैं। पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों में उत्पन्न होनेवाले वाणव्यन्तर देवों के उत्पाद-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
५६. जदि वाणमंतरे० किं पिसाय ? तहेव जाव
[५६ प्र.] भगवन् ! यदि वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च), वाणव्यन्तर देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे पिशाच वाणव्यन्तर देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[५६ उ.] पूर्ववत् समझना चाहिए, यावत्५७. वाणमंतरे णं भंते ! जे भविए पंचेंदियतिरिक्ख०? एवं चेव, नवरं ठिति संवेहं च जाणेजा।
[५७ प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देव, जो पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ?
[५७ उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना। स्थिति और संवेध उससे भिन्न जानना चाहिए।
विवेचन—निष्कर्ष संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में सभी प्रकार के वाणव्यन्तर जाति के देव आकर उत्पन्न होते हैं तथा वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होते हैं। पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने वाले ज्योतिष्क देवों में उपपात-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
५८. जदि जोतिसिय०? उववातो तहेव जाव
[५८ प्र.] यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होता है, तो ? इत्यादि प्रश्न।
१. भगवती. अ.वृत्ति, पत्र ८४२