Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-६]
[४२१ [१२३] इसी प्रकार यावत् स्नातक तक कहना चाहिए। [सत्तरहवाँ द्वार] अठारहवाँ कषायद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कषाय-प्ररूपणा
१२४. पुलाए णं भंते किं सकसायी होजा, अकसायी होजा? गोयमा ! सकसायी होजा, नो अकसायी होज्जा। [१२४ प्र.] भगवन् ! पुलाक सकषायी होता है या अकषायी होता है ? [१२४ उ.] गौतम ! वह सकषायी होता है, अकषायी नहीं होता है। १२५. जइ सकसायी से णं भंते ! कतिसु कसाएसु होजा? गोयमा ! चउसु, कोह-माण-माया-लोभेसु होजा। [१२५ प्र.] भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है, तो कितने कषायों में होता है ? [१२५ उ.] गौतम ! वह क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चारों कषायों में होता है। १२६. एवं बउसे वि। [१२६] इसी प्रकार बकुश के विषय में भी जानना चाहिए। १२७. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। [१२७] यही कथन-प्रतिसेवनाकुशील के विषय में समझना चाहिए। १२८. कसायकुसीले णं पुच्छा। गोयमा ! सकसायी होजा, नो अकसायी होज्जा। [१२८ प्र.] भगवन् ! कषायकुशील सकषायी होता है या अकषायी होता है ? [१२८ उ.] गौतम ! वह सकषायी होता है, अकषायी नहीं होता है। १२९. जति सकसायी होजा से णं भंते ! कतिसु कसाएसु होज्जा ?
गोयमा ! चउसु वा, तिसु वा, दोसु वा, एगम्मि वा होजा। चउसु होमाणे चउसु संजलणकोहमाण-माया-लोभेसु होज्जा, तिसु होमाणे तिसु संजलणमाण-माया-लोभेसु होजा, दोसु होमाणे संजलणमाया-लोभेसु होजा, एगम्मि होमाणे एगम्मि संजलणे लोभे होज्जा।
[१२९ प्र.] भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है, तो कितने कषायों में होता है ?
[१२९ उ.] गौतम ! वह चार, तीन, दो या एक कषाय में होता है। चार कषायों में होने पर संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ में होता है। तीन कषाय में होने पर संज्वलन मान, माया और लोभ में होता है। दो कषायों में होने पर संज्वलन माया और लोभ में होता है और एक कषाय में होने पर संज्वलन लोभ में होता है।
१३०. नियंठे णं० पुच्छा। गोयमा ! नो सकसायी होजा, अकसायी होज्जा।