Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-६]
[४२९
[१५९ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? [१५९ उ.] गौतम ! वह मोहनीयकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। १६०. सिणाए णं भंते ! ० पुच्छा। गोयमा ! वेदणिज्जाऽऽउय-नाम-गोयाओ चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेति। [ दारं २२] [१६० प्र.] भगवन् ! स्नातक कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? [१६० उ.] गौतम ! वह वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र, इन चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है।
[बाईसवाँ द्वार] विवेचन—निष्कर्ष-पुलाक से लेकर कषायकुशील तक आठों कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं। निर्ग्रन्थ मोहनीय को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं, क्योंकि उनका मोहनीय या तो उपशान्त हो जाता है या क्षीण हो जाता है। चार घातिकर्मों का क्षय हो जाने से स्नातक वेदनीयादि चार अघातिकर्मों का ही वेदन करते हैं। तेईसवाँ कर्मोदीरणाद्वार : कर्मप्रकृति-उदीरणा-प्ररूपणा
१६१. पुलाए णं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ उदीरेइ ? गोयमा ! आउय-वेयणिजवजाओ छ कम्मप्पगडीओ उदीरेइ। [१६१ प्र.] भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? [१६१ उ.] गौतम ! वह आयुष्य और वेदनीय के सिवाय शेष छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। १६.२. बउसे० पुच्छा।
गोयमा ! सत्तविहउदीरए वा, अट्टविहउदीरए वा, छविहउदीरए वा। सत्त उदीरेमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ उदीरेइ, अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ उदीरेइ, छ उदीरेमाणे आउय-वेयणिजवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ उदीरेइ।
[१६२ प्र.] भगवन् ! बकुश कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ?
[१६२ उ.] गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। सात की उदीरणा करता हुआ आयुष्य को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों को उदीरता है, आठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है तथा छह की उदीरणा करता है तो आयुष्य और वेदनीय को छोड़कर छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है।
१६३. पडिसेवणाकुसीले एवं चेव। [१६३] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना चाहिए।
,
भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ९. पृ. ३४०६