Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बावीसइमो : वाणमंतरुद्देसओ
बाईसवाँ : वाणव्यन्तर-उद्देशक वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होनेवाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों में उपपात-परिमाणादि का नागकुमार-उद्देशक के अतिदेशपूर्वक निर्देश
१. वाणमंतरा णं भंते कओहिंतो उववजंति, किं नेरएहितो उववजति तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति०? एवं जहेव णागकुमारुद्देसए असण्णी तहेव निरवसेसं।
[१ प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
_ [१ उ.] (गौतम ! ) जिस प्रकार नागकुमार-उद्देशक में कहा है, उसी प्रकार असंज्ञी तक सारी वक्तव्यता कहनी चाहिए।
विवेचन—निष्कर्ष-वाणव्यन्तर देव, मनुष्य और तिर्यञ्च गतियों से आकर उत्पन्न होते हैं, देवों और नारकों से आकर उत्पन्न नहीं होते। शेष परिमाणादि बातों के लिए अतिदेश किया गया है। वाणव्यन्तर देवों में उत्पन्न होनेवाले मनुष्यों के उत्पाद-परिमाण आदि वीस द्वारों की प्ररूपणा __२. जदि सन्निपंचेंदिय० जाव असंखेजवासाउयसन्निपंचेंदिय० जे भविए वाणमंतर० से णं भंते ! केवति०?
गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमद्वितीएसु। सेसं तं चेव जहा नागकुमारुद्देसए जाव कालाएसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं; एवतियं०। [ पढमो गमओ]।
[२ प्र.] भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला यावत् संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक जो वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होने योग्य है, यह कितने काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है ?
[२ उ.] गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट एक पल्योपम की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है। शेष सब नागकुमार-उद्देशक में कहा है, उसी के अनुसार जानना, यावत् कालादेश से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार पल्योपम, इतने काल तक गमनागमन करता है। [प्रथम गमक]
३. सो चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो, जहेव णागकुमाराणं बितियगमे वत्तव्वया। [बीओ गमओ]।