Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र से अनन्त हैं। छह संस्थानों का द्रव्यार्थादि रूप से अल्पबहुत्व
६. एएसि णं भंते ! परिमंडल-वट्ट-तंस-चतुरंस-आयत-अणित्थंथाणं संठाणाणं दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दवट्ठ-पएसट्टयाए कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा परिमंडला संठाणा दव्वट्ठयाए, वट्टा संठाणा दव्वट्ठयाए संखेजगुणा, चउरंसा संठाणा दव्वट्ठयाए संखेजगुणा, तंसा संठाणा दवट्ठयाए संखेजगुणा, आयता संठाणा दव्वट्ठयाए संखेजगुणा, अणित्थंथा संठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा।
पएसट्ठयाए-सव्वत्थोवा परिमंडला संठाणा पएसट्ठयाए, वट्टा संठाणा पएसट्ठयाए संखेजगुणा, जहा दव्वट्ठयाए तहा पएसट्ठयाए वि जाव अणित्थंथा संठाणा पएसट्ठयाए असंखेजगुणा।
दव्वट्ठपएसट्ठयाए-सव्वत्थोवा परिमंडला संठाणा दव्वट्ठयाए, सो चेव दव्वट्ठयांगमओ भाणियव्वो जाव अणित्थंथा संठाणा दव्वट्ठयाए असंखेजगुणा।अणित्थंथेहितो संठाणेहिंतो दव्वट्ठयाए, परिमंडला संठाणा पएसट्ठयाए असंखेजगुणा; वट्टा संठाणा पएसट्टयाए संखेजगुणा, सो चेव पएसट्टयाए गमओ भाणियव्वो जाव अणित्थंथा संठाणा पएसट्ठयाए असंखेजगुणा।
[६ प्र.] भगवन् ! इन परिमण्डल, वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र, आयत और अनित्थस्थ संस्थानों में द्रव्यार्थरूप से, प्रदेशार्थरूप से और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से कौन संस्थान किन संस्थानों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक
_[६ उ.] गौतम ! (१) द्रव्यार्थरूप से परिमण्डल-संस्थान सबसे अल्प हैं, (२) उनसे वृत्त-संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणा हैं, (३) उनसे चतुरस्र-संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणा हैं, (४) उनसे त्र्यस्रसंस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणा हैं, (५) उनसे आयत-संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणा हैं और (६) उनसे अनित्थंस्थ-संस्थान द्रव्यार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं।
प्रदेशार्थरूप से—(१) परिमण्डल-संस्थान प्रदेशार्थरूप से सबसे अल्प हैं, (२) उनसे वृत्त-संस्थान प्रदेशार्थरूप से संख्यातगुणा हैं, इत्यादि। जिस प्रकार द्रव्यार्थरूप से कहा गया है, उसी प्रकार प्रदेशार्थरूप से भी यावत्—'अनित्थंस्थ-संस्थान प्रदेशार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं', यहाँ तक कहना चाहिए।
द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से—परिमण्डल-संस्थान द्रव्यार्थरूप से सबसे अल्प हैं, इत्यादि जो पाठ द्रव्यार्थ सम्बन्धी हैं, वही यहाँ द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से जानना चाहिए; यावत्-अनित्थंस्थ-संस्थान द्रव्यार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं । द्रव्यार्थरूप अनित्थंस्थ-संस्थानों से, प्रदेशार्थरूप से परिमण्डल-संस्थान असंख्यातगुणा हैं; उनसे वृत्त-संस्थान प्रदेशार्थरूप से संख्यातगुणा हैं; इत्यादि, पूर्वोक्त प्रदेशार्थरूप का गमक, यावत् अनित्थंस्थसंस्थान प्रदेशार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं; यहाँ तक कहना चाहिए।
_ विवेचन–संस्थानों की अवगाहना के अल्पबहुत्व का विचार—जो संस्थान जिस संस्थान की अपेक्षा बहुप्रदेशावगाही होता है, वह स्वाभाविकरूप से थोड़ा होता है। परिमण्डलसंस्थान जघन्य वीस प्रदेश की अवगाहना वाला होता है और वृत्त, त्र्यस्र, चतुरस्र और आयत संस्थान जघन्यतः अनुक्रम से पाँच, चार,