Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [८२ प्र.] भगवन् ! कषायकुशील क्या इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न।
[८२ उ.] गौतम ! अविराधना की अपेक्षा वह इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है यावत् अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न होता है। विराधना की अपेक्षा अन्यतरदेव (किसी भी देव) में उत्पन्न होता है।
८३. नियंठे० पुच्छा।
गोयमा ! अविराहणं पडुच्च नो इंदत्ताए उववज्जेजा जाव नो लोगपालत्ताए उववज्जेजा, अहमिंदत्ताए उववजेजा। विराहणं पडुच्च अन्नयरेसु उववजेजा।
[८३ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ क्या इन्द्ररूप में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न ।
[८३ उ.] गौतम ! अविराधना की अपेक्षा वह इन्द्ररूप में यावत् लोकपालरूप में उत्पन्न नहीं होता, किन्तु (एकमात्र) अहमिन्द्ररूप में उत्पन्न होता है। विराधना की अपेक्षा वह किसी भी देवरूप में उत्पन्न होता है।
८४. पुलायस्स णं भंते ! देवलोगेसु उववजमाणस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं पलियोवमपुहत्तं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं। [८४ प्र.] भगवन् ! देवलोकों में उत्पन्न होते हुए पुलाक की स्थिति कितने काल की कही है ? [८४ उ.] गौतम ! पुलाक की स्थिति जघन्य पल्योपमपृथक्त्व की और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की है। ८५. बउसस्स० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं पलियोवमपुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाइं। [८५ प्र.] भगवन् ! (देवलोक में उत्पन्न होते हुए) बकुश की स्थिति कितने काल की कही है ?
[८५ उ.] गौतम ! बकुश की स्थिति जघन्य पल्योपमपृथक्त्व की और उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम की है।
८६. एवं पडिसेवणाकुसीलस्स वि। [८६] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना। ८७. कसायकुसीलस्स० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं पलियोवमपुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। [८७ प्र.] भगवन् ! देवलोक में उत्पन्न होते हुए कषायकुशील की स्थिति कितने काल की है ? [८७ उ.] गौतम ! उसकी स्थिति जघन्य पल्योपमपृथक्त्व की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। ८८.णियंठस्स० पुच्छा। गोयमा ! अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। [दारं १३] [८८ प्र.] भगवन् ! देवलोक में उत्पन्न होते हुए निर्ग्रन्थ की स्थिति कितने काल की होती है ? [८८ उ.] गौतम ! उसकी स्थिति अजघन्य-अनुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की होती है। [तेरहवाँ द्वार]