Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [प्र.] जहाँ यवाकार अनेक वृत्तसंस्थान हों, वहाँ परिमण्डलसंस्थान कितने हैं ? [द्व.] पूर्ववत् समझना चाहिए। २६. एवं जाव आयता। [२६] इसी प्रकार वृत्तसंस्थान (से लेकर) यावत् आयतसंस्थान भी अनन्त हैं। २७. एवं एक्केक्केणं संठाणेणं पंच वि.चारेयव्वा।
[२७] इसी प्रकार एक-एक संस्थान के साथ पांचों संस्थानों के सम्बन्ध का विचार करना चाहिए। सप्त नरकपृथ्वियों से लेकर ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक में पांचों यवमध्य संस्थानों में परस्पर अनन्तता-प्ररूपणा
२८. जत्थ णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एगे परिमंडले संठाणे जवमझे तत्थ परिमंडला संठाणा किं संखेजा० पुच्छा।
गोयमा ! नो संखेजा, नो असंखेजा, अणंता।
[२८ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में जहाँ एक यवमध्य (यवाकार) परिमण्डल-संस्थान है, वहाँ दूसरे (यवाकृति निष्पादक-परिमण्डल के सिवाय) परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
[२८ उ.] गौतम ! वे संख्यात या असंख्यात नहीं हैं, किन्तु अनन्त हैं। २९. वट्टा णं भंते ! संठाणा किं संखेजा०? एवं चेव।
[२९ प्र.] भगवन् ! जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
[२९ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। ३०. एवं जाव आयता। [३०] इसी प्रकार आयत पर्यन्त समझना।
३१. जत्थ णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए एगे वट्टे संठाणे जवमझे तत्थ परिमंडला संठाणा किं संखेजा० पुच्छा।
गोयमा ! नो संखेजा, नो असंखेज्जा, अणंता।
[३१ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में जहाँ यवाकार एक वृत्तसंस्थान है, वहाँ परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
[३१ उ.] गौतम ! वे संख्यात या असंख्यात नहीं, किन्तु अनन्त हैं। ३२. वडा संठाणा? एवं चेव।