Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कृतयुग्म भी हैं, यावत् कल्योज भी हैं।
६५. एवं एगिदियवजं जाव वेमाणिया। [६५] इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक कहना चाहिए। ६६. एवं सुयनाणपजवेहि वि। [६६] इसी प्रकार श्रुतज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी कथन करना चाहिए। ६७. ओहिनाणपज्जवेहि वि एवं चेव, नवरं विगलिंदियाणं नत्थि ओहिनाणं।
[६७] अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी यही वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि विकलेन्द्रियों में अवधिज्ञान नहीं होता है।
६८. मणपजवनाणं पि एवं चेव, नवरं जीवाणं मणुस्साण य, सेसाणं नत्थि।
[६८] मनःपर्यवज्ञान के पर्यायों के विषय में भी यही कथन करना चाहिए, किन्तु वह औधिक जीवों और मनुष्यों को ही होता है, शेष दण्डकों में नहीं पाया जाता।
६९. जीवे णं भंते ! केवलनाणपज्जवेहिं किं कडजुम्मे० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दावरजुम्मे, णो कलियोए। [६९ प्र.] भगवन् ! (एक) जीव केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न । [६९ उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म है, किन्तु योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं है। ७०. एवं मणुस्से वि। [७०] इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी जानना। ७१: एवं सिद्धे वि। [७१] सिद्ध के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। ७२. जीवा णं भंते ! केवलनाण० पुच्छा। . गोयमा ! ओघादेसेणं वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावर०, नो कलियोगा। [७२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[७२ उ.] गौतम ! ओघादेश से और विधानादेश से भी वे कृतयुग्म हैं, किन्तु योज, द्वापर युग्म और कल्योज नहीं हैं।
७३. एवं मणुस्सा वि। [७३] इसी प्रकार (अनेक) मनुष्यों के विषय में भी समझना चाहिए। ७४. एवं सिद्धा वि। [७४] इसी प्रकार सिद्धों के विषय में कहना चाहिए।