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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१४८] सप्तप्रदेशी स्कन्ध त्रिप्रदेशी स्कन्धवत् जानना चाहिए। १४९. अट्ठपएसिया जहा चउपएसिया। [१४९] अष्टप्रदेशी स्कन्ध की वक्तव्यता चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान है। १५०. नवपएसिया जहा परमाणुपोग्गला। [१५०] नवप्रदेशी स्कन्ध का कथन परमाणु-पुद्गलों के समान है। १५१. दसपएसिया जहा दुपएसिया। [१५१] दशप्रदेशी स्कन्ध की वक्तव्यता द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान जानना। १५२. संखेजपएसिया णं० पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि।
[१५२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१५२ उ.] गौतम ! ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं। विधानादेश से कृतयुग्म भी हैं, यावत् कल्योज भी हैं।
१५३. एवं असंखेजपएसिया वि, अणंतपएसिया वि। [१५३] इसी प्रकार (अनेक) असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की वक्तव्यता जानना।
विवेचन–परमाणु-पुद्गलों में कृतयुग्मादि-परमाणु-पुद्गल अनन्त होने पर भी उनमें संघात और भेद के कारण अनवस्थित-स्वरूप होने से वे ओघादेश से कृतयुग्मादि होते हैं। विधानादेश से अर्थात् प्रत्येक की अपेक्षा तो वे कल्योज ही होते हैं। इसी प्रकार आगे के सूत्रों में कृतयुग्मादि संख्या को स्वयमेव घटित कर लेना चाहिए। अवगाहना, स्थिति, वर्णगन्धादि पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्मादि प्ररूपणा
१५४. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं कडजुम्मपएसोगाढे० पुच्छा। गोयमा ! नो कडजुम्मपएसोगाढे, नो तेयोय०, नो दावरजुम्म० कलियोगपएसोगाढे। [१५४ प्र.] भगवन् ! (एक) परमाणु-पुद्गल कृतयुग्मप्रदेशावगाढ़ है ? इत्यादि पृच्छा।
[१५४ उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़, त्र्योज-प्रदेशावगाढ़, द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ़ नहीं है, किन्तु कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है।
१५५. दुपएसिए णं० पुच्छा।
गोयमा ! नो कडजुम्मपएसोगाढे, णो तेयोग०, सिय दावरजुम्मपएसोगाढे, सिय कलियोग१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८२