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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र _ [१३] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना चाहिए।
१४. [१] कसायकुसीले णं भंते ! किं सवेयए० पुच्छा। गोयमा ! सवेयए वा होजा, अवेयए वा होजा। [१४-१ प्र.] भगवन् ! कषायकुशील सवेदी होता है, या अवेदी होता है ? [१४-१ उ.] गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी होता है। [२] जइ अवेयए कि उवसंतवेयए, खीणवेयए होज्जा ? गोयमा ! उवसंतवेयए वा, खीणवेयए वा होज्जा।
[१४-२ प्र.] भगवन् ! यदि वह अवेदी होता है तो क्या वह उपशान्तवेदी होता है, अथवा क्षीणवेदी होता है ?
[१४-२ उ.] गौतम ! वह उपशान्तवेदी भी होता है, और क्षीणवेदी भी होता है। [३] जति सवेयए होज्जा किं इत्थिवेदए० होजा० पुच्छा ? गोयमा ! तिसु वि जहा बउसो। [१४-३ प्र.] भगवन् ! यदि वह सवेदी होता है तो क्या स्त्रीवेदी होता है ? इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न। [१४-३ उ.] गौतम ! बकुश के समान तीनों ही वेदों में होते हैं। १५.[१] णियंठे णं भंते ! किं सवेयए० पुच्छा ? गोयमा ! नो सवेयए होज्जा, अवेदए होजा।। [१५-१ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ सवेदी होता है, या अवेदी होता है ? [१५-१ उ.] गौतम ! वह सवेदी नहीं होता, किन्तु अवेदी होता है। [२] जइ अवेयए वा होजा किं उवसंत० पुच्छा ? गोयमा ! उवसंतवेयए वा होजा, खीणवेयए वा होज्जा।
[१५-२ प्र.] भगवन् ! यदि निर्ग्रन्थ अवेदी होता है, तो क्या वह उपशान्तवेदी होता है, या क्षीणवेदी होता है ? । [१५-२ उ.] गौतम ! वह उपशान्तवेदी भी होता है और क्षीणवेदी भी होता है। १६. सिणाए णं भंते ! किं सवेयए होजा०? जहा नियंठे तहा सिणाए वि, नवरं नो उवसंतवेयए होज्जा, खीणवेयए होज्जा। [ दारं २] । [१६ प्र.] भगवन् ! स्नातक सवेदी होता है, या अवेदी होता है ? इत्यादि (पूर्ववत् दोनों) प्रश्न। [१६ उ.] गौतम ! निर्ग्रन्थ के समान स्नातक भी अवेदी होता है, किन्तु वह उपशान्तवेदी नहीं होता,