Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवां शतक : उद्देशक-६]
[३९३ क्षीणवेदी होता है। [द्वितीय द्वार]
विवेचन–पांचों प्रकार के निर्ग्रन्थों में वेद का विचार–पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकुशील में उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी नहीं होती इसलिए वे अवेदी नहीं होते। पुलाकलब्धि स्त्री को नहीं होती, पुरुष को या पुरुष-नपुंसक साधक को होती है। कषायकुशील सूक्ष्मसम्परायगुणस्थान तक होते हैं। अत: वे प्रमत्त, अप्रमत और अपूर्वकरण गुणस्थान में सवेदी होते हैं तथा अनिवृत्तिबादर एवं सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान में वेद का उपशम या क्षय होने से अवेदी होते हैं।
निर्ग्रन्थ उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी दोनों में होते हैं। अत: वे उपशान्तवेदी या क्षीणवेदी होते हैं, किन्तु स्नातक क्षपकश्रेणी में ही होते हैं, इसलिए वे क्षीणवेदी ही होते हैं, उपशान्तवेदी नहीं।
पुरुष-नपुंसकवेदक-पुरुष होते हुए भी जो लिंग-छेद आदि के कारण नपुंसेकवेदक हो जाता है, ऐसे कृत्रिमनपुंसक को यहाँ पुरुष-नपुंसक कहा है, स्वरूपतः अर्थात् जो जन्म से नपुंसकवेदी है, उसे यहाँ ग्रहण नहीं किया गया है। तृतीय रागद्वार : पंचविधिनिर्ग्रन्थों में सरागत्व-वीतरागत्व प्ररूपणा
१७. पुलाए णं भंते ! किं सरोग होजा, वीयरागे होजा? गोयमा ! सरागे होज्जा, नो वीयरागे होजा। [२७ प्र.] भगवन् ! पुलाक सराग होता है या वीतराग? [१७ उ.] गौतम ! वह सराग होता है, वीतराग नहीं होता है। १८. एवं जाव कसायकुसीले। [१८] इसी प्रकार कषायकुशील तक जानना। १९.[१] णियंठे णं भंते ! किं सरागे होजा० पुच्छा। गोयमा ! नो सरागे होज्जा, वीयरागे होज्जा। [१९-१ प्र.] भगवन् ! निर्ग्रन्थ सराग होता है या वीतराग होता है ? [१९-१ उ.] गौतम ! वह सराग नहीं होता, अपितु वीतराग होता है। [२] जइ वीयरागे होज्जा कि उवसंतकसायवीयरागे होजा, खीणकसायवीयरागेल ? गोयमा ! उवसंतकसायवीतरागे वा होज्जा, खीणकसायवीतरागे वा होजा।
[१९-२ प्र.] (भगवन् ! ) यदि वह वीतराग होता है तो क्या उपशान्तकषायवीतराग होता है या क्षीणकषायवीतराग होता है ?
[१९-२ उ.] गौतम ! वह उपशान्तकषायवीतराग भी होता है और क्षीणकषायवीतराग भी होता है। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८९३