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[व्याख्याप्रज्ञाप्तसूत्र [६९-१ उ.] गौतम ! वह अवसपर्णिकाल में, उत्सर्पिणीकाल में अथवा नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है।
[२] जति ओसप्पिणिकाले होजा किं सुसमसुसमाकाले होजा० पुच्छा।
गोयमा ! जम्मण-संतिभावं पडुच्च नो सुसमसुसमाकाले होजा, नो सुसमाकाले होजा, सुसमदुस्समाकाले वा होज्जा, दुस्समसुसमाकाले वा होज्जा, दुस्समाकाले वा होजा, नो दुस्समदुस्समाकाले होजा। साहरणं पडुच्चं अन्नयरे समाकाले होज्जा।
[६९-२ प्र.] भगवन् ! यदि बकुश अवसर्पिणीकाल में होता है तो क्या सुषम-सुषमाकाल में होता है? इत्यादि प्रश्न।
[६९-२ उ.] गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा (वह) सुषम-सुषमाकाल में, सुषमाकाल में तथा दुःषम-दुःषमाकाल में नहीं होता, किन्तु सुषम-दुःषमाकाल में, दुःषम-सुषमाकाल में या दुःषमाकाल में होता है । संहरण की अपेक्षा (वह इनमें से) किसी भी (आरे के) काल में होता है।
[३] जति उस्सप्पिणिकाले होजा किं दुस्समदुस्समाकाले होजा० पुच्छा।
गोयमा ! जम्मणं पडुच्च नो दुस्समदुस्समाकाले होजा जहेव पुलाए। संतिभावं पडुच्च नो दुस्समदुस्समाकाले होजा०; एवं संतिभावेण वि जहा पुलाए जाव नो सुसमसुसमाकाले होज्जा। साहरणं पडुच्च अन्नयरे समाकाले होज्जा।
__[६९-३ प्र.] भगवन् ! यदि (बकुश) उत्सर्पिणीकाल में होता है तो क्या दुःषम-दुःषमाकाल में होता है ? इत्यादि प्रश्न।
[६९-३ उ.] गौतम ! जन्म की अपेक्षा वह दुःषम-दुःषमाकाल में नहीं होता (इत्यादि सब कथन) पुलाक के समान जानना। सद्भाव की अपेक्षा वह दुःषम-दुःषमाकाल में नहीं होता, इत्यादि समग्र वक्तव्यता पुलाक के.समान सुषम-सुषमाकाल में नहीं होता, तक कहनी चाहिए। संहरण की अपेक्षा (वह इन आरों में से) किसी भी काल में होता है।
[४] जदि नोओसप्पिणिनोउस्सप्पिणिकाले होजा० पुच्छा।
गोयमा ! जम्मण-संतिभावं पडुच्च नो सुसमसुसमापलिभागे होजा, जहेव पुलाए जाव दुस्समसुसमापलिभागे होजा। साहरणं पडुच्च अन्नयरे पलिभागे होज्जा जहा बउसे।
[६९-४ प्र.] भगवन् ! यदि बकुश नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणीकाल में होता है तो (छह आरों में से) किस आरे में होता है ?
[६९-४ उ.] गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा (वह) सुषम-सुषमा-समानकाल में नहीं होता, इत्यादि सब पुलाक के समान दुःषम-सुषमा-समानकाल में होता है, तक कहना चाहिए।
७०. एवं पडिसेवणाकुसीले वि। [७०] इसी प्रकार ( बकुश के समान) प्रतिसेवनाकुशील के विषय में कहना चाहिए।