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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [९ प्र.] भगवन् ! क्या (अनेक) आनप्राण (श्वासोच्छ्वास) संख्यात समय के होते हैं ? [९ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। १०. थोवा णं भंते ! किं संखेजा समया०? एवं चेव। [१० प्र.] भगवन् ! (अनेक) स्तोक संख्यात समयरूप हैं ? इत्यादि प्रश्न। [१० उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना। ११. एवं जाव उस्सप्पिणीओ त्ति। [११] इसी प्रकार (लव से लेकर) यावत् अवसर्पिणीकाल तक समझना चाहिए। १२. पोग्गलपरियट्टा णं भंते ! किं संखेजा समया० पुच्छा। गोयमा ! नो संखेजा समया, नो असंखेजा समया, अणंता समया। [१२ प्र.] भगवन् ! क्या पुद्गल-परिवर्तन संख्यात समय के होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । [१२ उ.] गौतम ! वह संख्यात समय के या असंख्यात समय के नहीं होते, किन्तु अनन्त समय के होते हैं।
विवेचन कालमान-प्ररूपणा—समय से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक ४६ भेद हैं। यहाँ तक का काल-परिमाण गणना के योग्य है। शीर्षप्रहेलिका में १९४ अंकों की संख्या आती है। काल-परिमाण तो इसके आगे भी बताया गया है, परन्तु वह उपमेयकाल है, गणनीय काल नहीं। समय से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक की संख्या का अर्थ पहले लिखा जा चुका है। इसी प्रकार पल्योपम, सागरोपम आदि उपमाकाल का अर्थ भी पहले अंकित किया जा चुका है।
आवलिका से पुद्गलपरिवर्तन तक का समयगत कालमान—आवलिका से उत्सर्पिणी तक का कालमान संख्यात और अनन्त समय का नहीं अपितु असंख्यात समय का है। किन्तु पुद्गलपरिवर्तन या भूत, भविष्य या सर्वकाल का मान अनन्त समय का बताया गया है। आवलिकाएँ, आनप्राण, स्तोक से लेकर अवसर्पिणियों (बहुवचन) तक कदाचित् असंख्यात समय की और कदाचित् अनन्त समय की हैं। परन्तु पुद्गलपरिवर्तन (बहुवचन) अनन्त समय के हैं।
इसमें दूसरे से लेकर सातवें सूत्र तक एकवचनपरक सूत्र हैं और आठवें से बारहवें सूत्र तक बहुवचनपरक सूत्र हैं। आनप्राणादि कालों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा से आवलिका : संख्या-प्ररूपणा
१३. आणापाणू णं भंते ! संखेजाओ आवलियाओ० पुच्छा ?
गोयमा ! संखेजाओ आवलियाओ, नो असंखेजाओ आवलियाओ नो अणंताओ आवलियाओ। १. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भाग ७. पृ. ३३४१ २. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. २, पृ. १०१२-१३