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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-५]
[३८१ [२७] इस प्रकार पूर्वोक्त (इस) गम (पाठ) के अनुसार यावत् शीर्षप्रहेलिका तक कहना चाहिए।
विवेचन—आनप्राणरूप कालमान से लेकर शीर्षप्रहेलिकारूप कालमान तक—प्रस्तुत दो सूत्रों में आवलिकारूप कालमान के अतिदेशपूर्वक स्तोक आदि का आनप्राण से शीर्षप्रहेलिका तक के कालमान की प्ररूपणा की गई है। सागरोपमादि कालों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा से पल्योपम-संख्या निरूपण
२८. सागरोवमे णं भंते ! किं संखेज्जा पलिओवमा० पुच्छा। गोयमा ! संखेज्जा पलिओवमा, नो असंखेजा पलिओवमा, नो अणंता पलिओवमा। [२८ प्र.] भगवन् ! सागरोपम क्या संख्यात पल्योपमरूप है ? इत्यादि प्रश्न ।
[२८ उ.] गौतम ! वह संख्यात पल्योपमरूप है किन्तु असंख्यात पल्योपमरूप या अनन्त पल्योपमरूप नहीं है।
२९. एवं ओसप्पिणी वि, उस्सप्पिणी वि। [२९] इसी प्रकार अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। ३०. पोग्गलपरियट्टे णं० पुच्छा। गोयमा ! नो संखेजा पलिओवमा, नो असंखेजा पलिओवमा, अणंता पलिओवमा। [३० प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिवर्तन क्या संख्यात पल्योपमरूप है ? इत्यादि प्रश्न।
[३० उ.] गौतम ! वह संख्यात पल्योपमरूप नहीं है और न असंख्यात पल्योपमरूप है, किन्तु अनन्त पल्योपमरूप है।
३१. एवं जाव सव्वद्धा। [३१] इसी प्रकार सर्वकाल (सर्वाद्धा) तक जानना। ३२. सागरोवमा णं भंते ! किं संखेजा पलिओवमा० पुच्छा। गोयमा ! सिय संखेजा पलिओवमा, सिय असंखेजा पलिओवमा, सिय अणंता पलिओवमा। [३२ प्र.] भगवन् ! सागरोपम क्या संख्यात पल्योपमरूप हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[३२ उ.] गौतम ! वे. कदाचित् संख्यात पल्योपमरूप हैं, कदाचित् असंख्यात पल्योपमरूप हैं और कदाचित् अनन्त पल्योपमरूप हैं।
३३. एवं जाव ओसप्पिणी वि, उस्सप्पिणी वि। [३३] इसी प्रकार यावत् अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। ३४. पोग्गलपरियट्टा णं० पुच्छा। गोयमा ! नो संखेजा पलिओवमा, नो असंखेजा पलिओवमा, अणंता पलिओवमा। [३४ प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिवर्तन क्या संख्यात पल्योपमरूप होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।