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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-५]
[१३ प्र.] भगवन् ! आनप्राण क्या संख्यात आवलिकारूप हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१३ उ.] गौतम ! (आनप्राण) संख्यात आवलिकारूप हैं, किन्तु असंख्यात आवलिकारूप या अनन्त आवलिकारूप नहीं है।
१४. एवं थोवे वि। [१४] इसी प्रकार स्तोक के सम्बन्ध में जानना। १५. एवं जाव सीसपहेलिय त्ति। [१५] यावत्-शीर्षप्रहेलिका तक भी इसी प्रकार जानना चाहिए। १६. पलिओवमे णं भंते ! किं सेखजाओ० पुच्छा। गोमा! नो संखेजाओ आवलियाओ,असंखेजाओ आवलियाओ, नो अणंताओ आवलियाओ। [१६ प्र.] भगवन् ! पल्योपम संख्यात आवलिकारूप है ? इत्यादि प्रश्न ।
[१६ उ.] गौतम ! वह संख्यात आवलिकारूप अथवा अनन्त आवलिकारूप नहीं है, किन्तु असंख्यात आवलिकारूप है।
१७. एवं सागरोवमे वि। [१७] इसी प्रकार सागरीपम के सम्बन्ध में जानना। १८. एवं ओसप्पिणीए वि, उस्सप्पिणीए वि। [१८] इसी प्रकार अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल के सम्बन्ध में जानना चाहिए। १९. पोग्गलपरियट्टे पुच्छा। गोयमा! नो संखेजाओ आवलियाओ, नो असंखेजाओ आवलियाओ, अणंताओ आवलियाओ। [१९ प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलपरिवर्तन संख्यात आवलिकारूप है ? इत्यादि प्रश्न।
[१९ उ.] गौतम ! वह न तो संख्यात आवलिकारूप है और न असंख्यात आवलिकारूप है, किन्तु अनन्त आवलिकारूप है।
२०. एवं जाव सव्वद्धा। [२०] इसी प्रकार यावत् सर्वकाल (सर्वाद्धा) तक जानना चाहिए। २१. आणपाणू[ ? ओ] णं भंते ! कि संखेजाओ आवलियाओ० पुच्छा। गोयमा ! सिय संखेजाओ आवलियाओ, सिय असंखेजाओ, सिय अणंताओ। [२१ प्र.] भगवन् ! क्या (बहुत) आनप्राण संख्यात आवलिकारूप हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[२१ उ.] गौतम ! वे कदाचित् संख्यात आवलिकारूप हैं, कदाचित् असंख्यात आवलिकारूप हैं और कदाचित् अनन्त आवलिकारूप हैं।