Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! सट्टाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजतिभागं; परट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेनं कालं।
[२०० प्र.] भगवन् ! निष्कम्प परमाणु-पुद्गल का कितने काल तक का अन्तर होता है ?
[२०० उ.] गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग का अन्तर होता है तथा परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर होता है।
२०१. दुपएसियस्स णं भंते ! खंधस्स सेयस्स० पुच्छा।
गोयमा ! सट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेनं कालं; परट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं। __ [२०१ प्र.] भगवन् ! सकम्प द्विप्रदेशी स्कन्ध का कितने काल का अन्तर होता है ?
[२०१ उ.] गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर होता है तथा परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अनन्त काल का अन्तर होता है।
२०२. निरेयस्स केवतियं कालं अंतरं होइ ?
गोयमा ! सट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेजतिभागं; परट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं।
[२०२ प्र.] भगवन् ! निष्कम्प द्विप्रदेशी स्कन्ध का कितने काल का अन्तर होता है ?
[२०२ उ.] गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग का अन्तर होता है तथा परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अनन्त काल का अन्तर होता है।
२०३. एवं जाव अणंतपएसियस्स।
[२०३] इसी प्रकार यावत् (सकम्प और निष्कम्प) अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के (काल का) अन्तर समझना चाहिए।
२०४. परमाणुपोग्गलाणं भंते ! सेयाणं केवतियं कालं अंतर होइ ? गोयमा ! नत्थंतरं। [२०४ प्र.] भगवन् ! सकम्प (बहुत) परमाणु-पुद्गलों का अन्तर कितने काल का होता है ? [२०४ उ.] गौतम ! उनमें अन्तर नहीं होता। २०५. निरेयाणं केवतियं कालं अंतर होइ ? नत्थंतरं। [२०५ प्र.] भगवन् ! निष्कम्प परमाणु-पुद्गलों का अन्तर कितने काल का होता है ?