Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-४]
[३५९ [१७७] चतुष्प्रदेशीस्कन्ध-सम्बन्धी कथन द्विप्रदेशीस्कन्ध के समान है। १७८. पंचपएसिए जहा तिपएसिए। [१७८] पंचप्रदेशीस्कन्ध की वक्तव्यता त्रिप्रदेशीस्कन्धवत् है। १७९. छप्पएसिए जहा दुपएसिए। [१७९] षट्प्रदेशीस्कन्ध-विषयक कथन द्विप्रदेशीस्कन्ध के समान जानना। १८०. सत्तपएसिए जहा तिपएसिए। [१८०] सप्तप्रदेशीस्कन्ध-सम्बन्धी कथन त्रिप्रदेशीस्कन्ध के समान है। १८१. अट्ठपएसिए जहा दुपएसिए। [१८१] अष्टप्रदेशीस्कन्ध-विषयक वक्तव्यता द्विप्रदेशीस्कन्ध जैसी है। १८२. नवपएसिए जहा तिपएसिए। [१८२] नवप्रदेशीस्कन्ध का कथन त्रिप्रदेशीस्कन्ध जैसा है। १८३. दसपएसिए जहा दुपएसिए। [१८३] दशप्रदेशीस्कन्ध-सम्बन्धी कथन द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान जानना चाहिए। १८४. संखेजपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा। गोयमा ! सिय सड्डे, सिय अणड्डे। [१८४ प्र.] भगवन् ! संख्यातप्रदेशीस्कन्ध सार्द्ध है या अनर्द्ध है ? [१८४ उ.] गौतम ! कदाचित् सार्द्ध है और कदाचित् अनर्द्ध है। १८५. एवं असंखेजपएसिए वि। [१८५] इसी प्रकार असंख्यातप्रदेशीस्कन्ध के विषय में कहना चाहिए। १८६. एवं अणंतपएसिए वि। [ १.८६] अनन्तप्रदेशीस्कन्ध का कथन भी इसी प्रकार है। १८७. परमाणुपोग्गला णं भंते ! कि सड्ढा, अणड्डा ? गोयमा ! सड्ढा वा अणड्डा वा। [१८७ प्र.] भगवन् ! (अनेक) परमाणु-पुद्गल सार्द्ध हैं या अनर्द्ध हैं ? [१८७ उ.] गौतम ! वे सार्द्ध भी हैं और अनर्द्ध भी हैं। १८८. एवं जाव अणंतपएसिया। [१८८] इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिए। विवेचन—पुद्गलों की सार्द्धता-अनर्द्धता का रहस्य–समसंख्या वाले (परमाणुओं) प्रदेशों के