Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ४]
[ ३४५
गोयमा ! अनंतपएसिएहिंतो खंधेहिंतो असंखेज्जपएसिया खंधा पएसट्टयाए बहुया ।
[१०५ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों में कौन किससे बहुत हैं ? [१०५ उ.] गौतम ! अनन्तप्रदेशी स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थ रूप से बहुत हैं ।
विवेचन—परमाणु-पुद्गलों से अनन्त- प्रदेशी स्कन्धों तक का अल्पबहुत्व - द्व्यणुकों से परमाणु सूक्ष्म तथा एक होने के कारण बहुत हैं और द्विप्रदेशी स्कन्ध परमाणुओं से स्थूल होने से थोड़े हैं, इसी प्रकार आगे-आगे के सूत्रों के विषय में जानना चाहिए। पूर्व - पूर्व की संख्या बहुत है और पीछे-पीछे की संख्या थोड़ी है । दशप्रदेशी स्कन्धों से संख्यातप्रदेशी स्कन्ध बहुत हैं, क्योंकि संख्यात के स्थान बहुत हैं । संख्यातप्रदेशी स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध बहुत हैं, क्योंकि संख्यातप्रदेशी स्कन्धों की अपेक्षा असंख्यात के स्थान बहुत हैं, परन्तु असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध अल्प हैं, क्योंकि उनका तथाविध सूक्ष्मपरिणाम होता है ।
प्रदेशार्थ से विचार करते हुए बताया गया है कि परमाणुओं से द्विप्रदेशी स्कन्ध बहुत हैं । कल्पना करो कि द्रव्यरूप से परमाणु सौ और द्विप्रदेशी स्कन्ध साठ हैं; तो प्रदेशार्थरूप से परमाणु तो सौ ही हैं, परन्तु द्व्यणुक १२० हैं । इस प्रकार द्व्यणुक बहुत हैं । यही विचारणा आगे भी समझनी चाहिए ।
१०६. एएसि णं भंते ! एगपएसोगाढाणं दुपएसोगाढाण य पोग्गलाणं दव्वट्टयाए कयरे कयरेहिंतो विसेसाहिया ?
गोयमा ! दुपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहिंतो एगपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए विसेसाहिया । [१०६ प्र.] भगवन् ! एकप्रदेशावगाढ़ और द्विप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों में, द्रव्यार्थ से कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ?
[१०६ उ.] गौतम ! द्विप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से विशेषाधिक हैं ।
१०७. एवं एएणं गमएणं तिपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहिंतो दुपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए विसेसाहिया जाव दसपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहिंतो नवपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए विसेसाहिया । दसपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहिंतो संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए बहुया । संखेज्जपएसोगाढेहिंतो पोग्गलेहिंतो असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए बहुया पुच्छा सव्वत्थ भाणियव्वा ।
[१०७] इसी गमक (पाठ) के अनुसार त्रिप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से द्विप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ विशेषाधिक हैं, यावत् दशप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से नवप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से विशेषाधिक हैं। दशप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं । संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों से असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं। पृच्छा सर्वत्र समझ लेनी चाहिए।
१०८. एएसि णं भंते ! एगपएसोगाढाणं दुपए सोगाढाण य पोग्गलाणं परसट्टयाए करे कयरेहिंतो विसेसाहिया ?
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८७९
(ख) भगवती (हिन्दी विवेचन) भा. ७, पृ. ३२५८