________________
पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक - ४ ].
[ ३४९
एगपएसोगाढा पोग्गला अपएसट्टयाए, संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा असंखेज्जपएसो गाढा पोग्गला पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा । दव्वट्ठपएसट्टयाए - सव्वत्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टअपएसट्टयाए, संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए संखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा ।
[११९ प्र.] भगवन् ! एकप्रदेशावगाढ़, संख्यातप्रदेशावगाढ़, और असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों में, द्रव्यार्थ प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ - प्रदेशार्थरूप से कौन-से पुद्गल किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ?
[११९ उ.] गौतम ! द्रव्यार्थ से — एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से असंख्यातगुण हैं । प्रदेशार्थ से—एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल अप्रदेशार्थं से सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेशार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं । द्रव्यार्थ - प्रदेशार्थ सेएकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ - अप्रदेशार्थ से सबसे अल्प हैं। उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेशार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से असंख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं।
१२०. एएसि णं भंते ! एगसमयद्वितीयाणं संखेज्जसमयद्वितीयाणं असंखेज्जसमयद्वितीयाण य पोग्गलाणं० ?
जहा ओगाहणाए तहा ठितीए वि भाणियव्वं अप्पाबहुगं ।
[१२० प्र.] भगवन् ! एकसमय की स्थिति वाले, संख्यातसमय की स्थिति वाले और असंख्यातसमय की स्थिति वाले पुद्गलों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ?
[१२० उ.] गौतम ! अवगाहना के अल्पबहुत्व के समान स्थिति का अल्पबहुत्व कहना चाहिए।
विवेचन — क्षेत्रावगाढ़ पुद्गलों का अल्पबहुत्व — क्षेत्राधिकार में क्षेत्र की प्रधानता है। अतएव परमाणु पुद्गल तथा द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी किसी विवक्षित एक क्षेत्र में अवगाढ़ कहे जाते हैं । यहाँ आधार और आधेय में अभेद की विवक्षा करने से वे एकप्रदेशावगाढ़ कहे जाते हैं । इसलिए एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से सबसे थोड़े हैं, क्योंकि वे लोकाकाश के प्रदेशप्रमाण ही हैं। कोई भी ऐसा आकाशप्रदेश नहीं है, जो एक प्रदेशावगाही परमाणु आदि को अवकाश-प्रदानरूप परिणाम से परिणत न हो। इसी प्रकार आगे संख्यात - प्रदेशावगाढ़ आदि पुद्गलों के विषय में भी विचार कर लेना चाहिए ।" एक-संख्येय-असंख्येय- अनन्तगुण वर्ण- गन्धादि वाले पुद्गलों की द्रव्यार्थ प्रदेशार्थरूप से अल्पबहुत्वचर्चा
१२१. एएसि णं भंते ! एगगुणकालगाणं संखेज्जगुणकालगाणं असंखेज्जगुणकालगाणं अणंतगुणकालगाण य पोग्गलाणं दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दंव्वट्ठपएसट्टयाए० ?
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८८०