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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एएसि जहा परमाणुपोग्गलाणं अप्पाबहुगं तहा एतेसि पि अप्पाबहुगं।
[१२१ प्र.] भगवन् ! एकगुण काला, संख्यातगुण काला, असंख्यातगुण काला और अनन्तगुण काला, इन पुद्गलों में द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से कौन पुद्गल किन पुद्गलों से यावत् विशेषाधिक
[१२१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार परमाणु-पुद्गलों का अल्पबहुत्व बताया गया है, उसी प्रकार इनका भी अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
१२२. एवं सेसाण वि वण्ण-गंध-रसाणं। [१२२] इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध और रस सम्बन्धी अल्पबहुत्व के विषय में कहना चाहिए।
१२३. एएसि णं भंते ! एगगुणकक्खडाणं संखेजगुणकक्खडाणं असंखेजगुणकक्खडाणं अणंतगुणकक्खडाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा?
गोयमा ! सव्वत्थोवा एगगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए, संखेजगुणाकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए संखेजगुणा, असंखेजगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए असंखेजगुणा, अणंतगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए अणंतगुणा। पएसट्ठयाए—एवं चेव, नवरं संखेजगुणकक्खडा पोग्गला पएसट्ठयाए असंखेजगुणा, सेसं तं चेव। दव्वट्ठपएसट्ठयाए-सव्वत्थोवा एगगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठपएसट्ठयाए, संखेजगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए संखेजगुणा, ते चेव पएसट्ठयाए संखेजगुणा, असंखेजगुणकक्खडा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्ठयाए असंखेजगुणा। अणंतगुणकक्खडा दव्वट्ठयाए अणंतगुणा, ते चेव पएसट्टयाए अणंतगुणा। ____ [१२३ प्र.] भगवन् ! एकगुण कर्कश, संख्यातगुण कर्कश, अंसख्यातगुण कर्कश और अनन्तगुण कर्कश पुद्गलों में द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से कौन पुद्गल किन पुद्गलों से यावत् विशेषाधिक
[१२३ उ.] गौतम ! एकगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से असंख्यात गुण हैं । उनसे अनन्तगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से अनन्तगुण हैं। प्रदेशार्थ से भी इसी प्रकार समझना चाहिए। विशेष यह है कि संख्यातगुण कर्कश-पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं । शेष कथन पूर्ववत् । द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से—एक गुणकर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं । उनसे संख्यातगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से संख्यातगुण हैं । उनसे असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से असंख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं। उनसे अनन्तगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से अनन्तगुण हैं । इसी प्रकार उनसे अनन्तगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से अनन्तगुण हैं।
१२४. एवं मउय-गरुय-लहुयाण वि अप्पाबहुयं। [१२४] इसी प्रकार मृदु, गुरु और लघु स्पर्श के अल्पबहुत्व के विषय में कहना चाहिए।