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________________ ३५०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एएसि जहा परमाणुपोग्गलाणं अप्पाबहुगं तहा एतेसि पि अप्पाबहुगं। [१२१ प्र.] भगवन् ! एकगुण काला, संख्यातगुण काला, असंख्यातगुण काला और अनन्तगुण काला, इन पुद्गलों में द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से कौन पुद्गल किन पुद्गलों से यावत् विशेषाधिक [१२१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार परमाणु-पुद्गलों का अल्पबहुत्व बताया गया है, उसी प्रकार इनका भी अल्पबहुत्व जानना चाहिए। १२२. एवं सेसाण वि वण्ण-गंध-रसाणं। [१२२] इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध और रस सम्बन्धी अल्पबहुत्व के विषय में कहना चाहिए। १२३. एएसि णं भंते ! एगगुणकक्खडाणं संखेजगुणकक्खडाणं असंखेजगुणकक्खडाणं अणंतगुणकक्खडाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा एगगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए, संखेजगुणाकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए संखेजगुणा, असंखेजगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए असंखेजगुणा, अणंतगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठयाए अणंतगुणा। पएसट्ठयाए—एवं चेव, नवरं संखेजगुणकक्खडा पोग्गला पएसट्ठयाए असंखेजगुणा, सेसं तं चेव। दव्वट्ठपएसट्ठयाए-सव्वत्थोवा एगगुणकक्खडा पोग्गला दव्वट्ठपएसट्ठयाए, संखेजगुणकक्खडा पोग्गला दब्वट्ठयाए संखेजगुणा, ते चेव पएसट्ठयाए संखेजगुणा, असंखेजगुणकक्खडा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, ते चेव पएसट्ठयाए असंखेजगुणा। अणंतगुणकक्खडा दव्वट्ठयाए अणंतगुणा, ते चेव पएसट्टयाए अणंतगुणा। ____ [१२३ प्र.] भगवन् ! एकगुण कर्कश, संख्यातगुण कर्कश, अंसख्यातगुण कर्कश और अनन्तगुण कर्कश पुद्गलों में द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से कौन पुद्गल किन पुद्गलों से यावत् विशेषाधिक [१२३ उ.] गौतम ! एकगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से असंख्यात गुण हैं । उनसे अनन्तगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से अनन्तगुण हैं। प्रदेशार्थ से भी इसी प्रकार समझना चाहिए। विशेष यह है कि संख्यातगुण कर्कश-पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं । शेष कथन पूर्ववत् । द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से—एक गुणकर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं । उनसे संख्यातगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से संख्यातगुण हैं । उनसे असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से असंख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं। उनसे अनन्तगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से अनन्तगुण हैं । इसी प्रकार उनसे अनन्तगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से अनन्तगुण हैं। १२४. एवं मउय-गरुय-लहुयाण वि अप्पाबहुयं। [१२४] इसी प्रकार मृदु, गुरु और लघु स्पर्श के अल्पबहुत्व के विषय में कहना चाहिए।
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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