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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-४]
[३५१ १२५. सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खाणं जहा वण्णाणं तहेव। [१२५] शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों-सम्बन्धी अल्पबहुत्व वर्गों के अल्पबहुत्व के समान है।
विवेचन-वर्णादि चारों का द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ, और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से अल्पबहुत्व-एकगुण काले आदि वर्गों से लेकर रूक्षस्पर्श वाले पुद्गलों तक का द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ एवं द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ रूप से अल्पबहुत्व का यथोचित तथा क्रमशः कथन किया गया है।
१२६. परमाणुपोग्गले णं भंते ! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मे, तेयोए, दावर०, कलियोगे? गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दावर०, कलियोए। [१२६ प्र.] भगवन् ! एक परमाणु पुद्गल द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, योज, द्वापरयुग्म है या कल्योज
[१२६ उ.] गौतम ! वह न तो कृतयुग्म है, न त्र्योज है और न द्वापरयुग्म है, किन्तु कल्योज है। १२७. एवं जाव अणंतपएसिए खंधे। [१२७] इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिए। १२८. परमाणुपोग्गला णं भंते ! दवट्ठयाए किं कडजुम्मा० पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा। विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावर०, कलियोगा।
[१२८ प्र.] भगवन् ! (बहुत) परमाणुपुद्गल द्रव्यार्थ से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१२८ उ.] गौतम ! ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म, यावत् कल्योज हैं; किन्तु विधानादेश से कृतयुग्म, त्र्योज या द्वापरयुग्म नहीं हैं, कल्योज हैं।
१२९. एवं जाव अणंतपएसिया खंधा। [१२९] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों पर्यन्त जानना चाहिए। १३०. परमाणुपोग्गले णं भंते ! पदेसट्ठयाए किं कडजुम्मे पुच्छा। गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावर० कलियोए। [ १.३० प्र.] भगवन् ! परमाणुपुद्गल प्रदेशार्थ से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न। [१३० उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म नहीं, त्र्योज नहीं तथा द्वापरयुग्म भी नहीं है, किन्तु कल्योज है। १३१. दुपएसिए पुच्छा। . गोयमा ! नो कड०, नो तेयोए, दावर०, नो कलियोगे।
[१३१ प्र.] भगवन् ! द्विप्रदेशी स्कन्ध ? १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २, पृ. १०००