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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[१३१ उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म, त्र्योज या कल्योज नहीं है, किन्तु द्वापरयुग्म है। १३२. तिपएसिए पुच्छा। गोयमा ! नो कडजुम्मे, तेयोए, नो दावर०, नो कलियोए। [१३२ प्र.] भगवन् ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध ? [१३२ उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं है, किन्तु त्र्योज है। १३३. चउप्पएसिए पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्मे, नो तेयाए, नो दावर०, नो कलियोए। [१३३ प्र.] भगवन् ! चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध ? [१३३ उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म है, किन्तु योज, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं है। १३४. पंचपदेसिए जहा परमाणुपोग्गले। [१३४] पंचप्रदेशी स्कन्ध की वक्तव्यता परमाणुपुद्गल के कथन के समान जानना। १३५. छप्पदेसिए जहा तिपदेसिए। [१३५] षट्प्रदेशी की वक्तव्यता द्विप्रदेशीस्कन्ध के समान जानना। १३६. सत्तपदेसिए जहा तिपदेसिए। [१३६] सप्तप्रदेशी स्कन्ध का कथन परमाणुपुद्गल के समान जानना चाहिए। १३७. अट्ठपएसिए जहा चउपदेसिए। [१३६] अष्टप्रदेशी स्कन्ध का कथन परमाणुपुद्गल के समान जानना चाहिए। १३८. नवपदेसिए जहा परमाणुपोग्गले। [१३८] नवप्रदेशी स्कन्ध का कथन परमाणुपुद्गल के समान जानना चाहिए। १३९. दसपदेसिए जहा दुपदेसिए। [१३९] दशप्रदेशी स्कन्ध का कथन द्विप्रदेशिक के समान है। १४०. संखेजपएसिए णं भंते ! पोग्गले० पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मे, जाव सिय कलियोगे। [१४० प्र.] भगवन् ! संख्यातप्रदेशी पुद्गल ? [१४० उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज है। १४१. एवं असंखेजपदेसिए वि, अणंतपदेसिए वि। [१४१] इसी प्रकार असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी जानना चाहिए।