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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ९९. एएसि णं भंते ! दसपदे० पुच्छा। गोयमा ! दसपदेसिएहितो खंधेहितो संखेजपएसिया खंधा दव्वट्ठयाए बहुया।
[९९ प्र.] भगवन् ! दशप्रदेशी स्कन्धों और संख्यातप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
[९९ उ.] गौतम ! दशप्रदेशिक स्कन्धों से संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं। १००. एएसिणं संखेज० पुच्छा। गोयमा ! संखेजपएसिएहितो खंधेहितो असंखेजपएसिया खंधा दव्वट्ठयाए बहुया।
[१०० प्र.] भगवन् ! इन संख्यातप्रदेशी स्कन्धों और असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१०० उ.] गौतम ! संख्यातप्रदेशी स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं। . १०१. एएसि णं भंते ! असंखेज्ज० पुच्छा। गोयमा ! अणंतपएसिएहिंतो खंधेहितो असंखेजपएसिया खंधा दव्वट्ठयाए बहुया।
[१०१ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१०१ उ.] गौतम ! अनन्तप्रदेशी स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं।
१०२. एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं दुपएसियाण य खंधाण पएसट्ठयाए कयरे कयरेहितो बहुया।
गोयमा ! परमाणुपोग्गलेहिंतो दुपएसिया खंधा पएसट्ठयाए बहुया। [१०२ प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कन्धों में प्रदेशार्थरूप से कौन किससे बहुत हैं ? [१०२ उ.] गौतम ! परमाणु-पुद्गलों से द्विप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से बहुत हैं। १०३. एवं एएणं गमएणं जाव नवपएसिएहितो खंधेहिंतो दसपएसिया खंधा पएसट्ठयाए बहुया।
[१०३] इस प्रकार इस गमक (पाठ) के अनुसार यावत् नवप्रदेशी स्कन्धों से दशप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से बहुत हैं।
१०४. एवं सव्वत्थ पुच्छियव्वं। दसपएसिहिंतो खंधेहितो संखेजपएसिया खंधा पएसट्ठयाए बहुया। संखेजपएसिएहितो असंखेजपएसिया खंधा पदेसट्टयाए बहुया।
__ [१०४] इस प्रकार सर्वत्र प्रश्न करना चाहिए। दशप्रदेशी स्कन्धों से संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से बहुत हैं । संख्यातप्रदेशी स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से बहुत हैं।
१०५. एएसि णं भंते ! असंखेजपएसियाणं० पुच्छा।