Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-३]
[३०९ और एक शेष रहने पर कल्योज होता है, क्योंकि एक प्रदेश पर भी बहुत से अणु अवगाढ़ होते हैं।'
कठिन शब्दार्थ—ओघादेसेणं-ओघादेश से सामान्यतया सर्वसमुदित रूप से।विहाणादेसेणंविधानादेश से—एक-एक की अपेक्षा से।२ । पांच संस्थानों में यथायोग्य कृतयुग्मादि प्रदेशावगाह-प्ररूपणा
५१. परिमंडले णं भंते ! संठाणे किं कडजुम्मपएसोगाढे जाव कलियोगपएसोगाढे ?
गोयमा ! कडजुम्मपएसोगाढे, नो तेयोगदेसोगाढे, नो दावरजुम्मपएसोगाढे, नो कलियोगपएसोगाढे।
[५१ प्र.] भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है, त्र्योज-प्रदेशावगाढ़ है, द्वापरयुग्मप्रदेशावगाढ़ है, अथवा कल्योज-प्रदेशावगाढ़ हैं ?
__ [५१ उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है किन्तु न तो त्र्योज-प्रदेशावगाढ़ है, न ही द्वापरयुग्मप्रदेशावगाढ़ है और न कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है।
५२. वट्टे णं भंते ! संठाणे किं कडजुम्म० पुच्छा।
गोयमा ! सिय कडजुम्मपदेसोगाढे, सिय तेयोगपएसोगाढे, नो दावरजुम्मपदेसोगाढे, सिय कलियोगपएसोगाढे।
[५२ प्र.] भगवन् ! वृत्त-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है ? इत्यादि प्रश्न।
[५२ उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है, कदाचित् त्र्योज-प्रदेशावगाढ़ है और कदाचित् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है, किन्तु द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ़ नहीं होता।
५३. तंसे णं भंते ! संठाणे० पुच्छा।
गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे, सिय तेयोगपदेसोगाढे, सिय दावरजुम्मपएसोगाढे, नो कलियोगपएसोगाढे।
[५३ प्र.] भगवन् ! यस्र-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावागाढ़ है ? इत्यादि प्रश्न।
[५६ उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़, कदाचित् त्र्योज-प्रदेशावगाढ़ और कदाचित् द्वापरयुग्म-प्रदेशावगढ़ होता है, किन्तु कल्योज-प्रदेशावगाढ़ नहीं होता।
५४. चउरंसे णं भंते ! संठाणे०,? जहा वट्टे तहा चतुरंसे वि। [५४ प्र.] भगवन् ! चतुरस्र-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है ? इत्यादि प्रश्न।
[५४ उ.] गौतम ! जिस प्रकार वृत्त-संस्थान के विषय में कहा है, उसी प्रकार चतुरस्र-संस्थान के १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६३
(ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ७, पृ. ३२२१ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६३