Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-४]
[३३३ . [३८] इसी प्रकार नैरयिक भी जानना चाहिए।
३९. एवं जाव वेमाणिया। [३९] वैमानिकों तक इसी प्रकार जानना। ४०. सिद्धा णं भंते ! • पुच्छा। गोयमा ! ओघादेसेण वि विहाणादेसेण विकडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो कलियोगा। [४० प्र.] भगवन् ! (अनेक) सिद्ध आत्मप्रदेशों की अपेक्षा से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[४० उ.] गौतम ! वे ओघादेश से और विधानादेश से भी कृतयुग्म हैं, किन्तु, त्र्योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं हैं।
विवेचन—जीव का कृतयुग्मादि निरूपण-जीव द्रव्यरूप से एक द्रव्य है, इसलिए वह कल्योज है, किन्तु समस्त जीव द्रव्यरूप से अनन्त अवस्थित होने से कृतयुग्म हैं और विधानादेश से, अर्थात् प्रत्येक की अपेक्षा वे कल्योज हैं । आत्मप्रदेशों की अपेक्षा समस्त जीवों के प्रदेश असंख्यात होने से चार-चार का अपहार करने पर अन्त में चार ही शेष रहते हैं, अतः कृतयुग्म होते हैं। शरीर-प्रदेशों की अपेक्षा—सामान्यतः सभी जीवों के शरीरप्रदेश संघात और भेद से अनवस्थित अनन्त होने से भिन्न-भिन्न समय में उनमें कृतयुग्मादि चारों राशियाँ बन सकती हैं। विशेष में प्रत्येक जीव शरीर के प्रदेशों में एक समय में भी चारों राशियाँ पाई जा सकती हैं, क्योंकि किसी जीवशरीर के प्रदेश कृतयुग्म होते हैं तो किसी अन्य जीवशरीर के प्रदेश त्र्योजादि राशि होते हैं । इस प्रकार चारों राशियाँ पाई जाती हैं। सामान्य जीव एवं चौवीस दण्डकों में अवगाहनापेक्षया कृतयुग्मादि प्ररूपणा
४१. जीवे णं भंते ! किं कडजुम्मपएसोगाढे० पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे जाव सिय कलियोगपएसोगाढे। [४१ प्र.] भगवन् ! जीव कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ है ? इत्यादि प्रश्न।
[४१ उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ होता है, यावत् कदाचित् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ होता है।
४२. एवं जाव सिद्धे। [४२] इसी प्रकार (एक) सिद्धपर्यन्त जानना चाहिए। ४३. जीवा णं भंते ! कि कडजुम्मपएसोगाढा० पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा, नो तेयोग०, नो दावर०, नो कलियोग०; विहाणादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा वि जाव कलियोगा पएसोगाढा वि।
[४३ प्र.] भगवन् ! (बहुत) जीव कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८७५