Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३३४]
[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४३ उ.] गौतम ! वे ओघादेश से कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं, किन्तु योज, द्वापरयुग्म और कल्योज प्रदेशावगाढ़ नहीं हैं । विधानादेश से वे कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ यावत् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ हैं।
४४. नेरतिया णं० पुच्छा।
गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मपएसोगाढा जाव सिय कलियोगपएसोगाढा; विहाणादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा वि जाव कलियोगपएसोगाढा.वि।
[४४ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं ? इत्यादि प्रश्न । __ [४४ उ.] गौतम ! वे ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ यावत् कदाचित् कल्योजप्रदेशावगाढ़ हैं। विधानादेश से कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं, यावत् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ भी हैं।
४५. एवं एगिदिय-सिद्धवजा सव्वे वि।
[४५] एकेन्द्रिय जीवों और सिद्धों को छोड़ कर शेष सभी (असुरकुमार से लेकर वैमानिकों तक के) जीव इसी प्रकार नैरयिक के समान कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ आदि होते हैं।
४६. सिद्धा एगिदिया य जहा जीवा। [४६] सिद्धों और एकेन्द्रिय जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान है।
विवेचन—कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ आदि की प्ररूपणा—सामान्यतया एक जीव की अपेक्षा तथा . नैरयिक से लेकर सिद्ध जीव तक कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ कदाचित् त्र्योज-प्रदेशावगाढ़ भी होता है, कदाचित् द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ़ भी होता है, कदाचित् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ होता है, इस प्रकार के कथन का कारण औदारिक आदि शरीरों की विचित्र अवगाहना है। सामान्य जीव के कथन के समान ही नैरयिक से लेकर सिद्ध पर्यन्त जानना चाहिए।
अनेक जीव सामान्यतः कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ हैं, क्योंकि समस्त जीवों द्वारा अवगाढ़ प्रदेशों के लोकप्रमाण अवस्थित असंख्यात होने से उनमें कृतयुग्मता होती है, त्र्योजादि नहीं। विधान (एक-एक) की अपेक्षा से जो एक काल में चारों प्रकार के होने का कथन किया गया है, उसका कारण अवगाहना की विचित्रता है।' जीव एवं चौवीस दण्डकों में कृतयुग्मादि समय-स्थिति की प्ररूपणा
४७. जीवे णं भंते ! किं कडजुम्मसमयट्ठितीए० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्मसमयद्वितीए, नो तेयोग० नो दावर०, नो कलियोगसमयद्वितीये। [४७ प्र.] भगवन् ! (एक) जीव कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है ? इत्यादि प्रश्न। [४७ उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है, किन्तु योज-समय, द्वापरयुग्म-समय
१. भगवती. प्रमेयचन्द्रिका टीका, भा. १५. पृ.७७०