________________
पच्चीसवाँ शतक : उद्देशक-३]
[३१३ गोयमा ! नो संखेजाओ, नो असंखेज्जाओ, अणंताओ। [६८ प्र.] भगवन् ! (आकाश-प्रदेश की) श्रेणियां द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात है या अनन्त
[६८ उ.] गौतम ! वे संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं। ६९. पाईणपडीणायताओ णं भंते ! सेढीओ दव्वट्ठयाए०? एवं चेव। [६९ प्र.] भगवन् ! पूर्व और पश्चिम दिशा में लम्बी श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप में संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न ? [६९ उ.] गौतम ! वे पूर्ववत् (अनन्त) हैं। ७०. एवं दाहिणुत्तरायताओ वि। [७०] इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए। ७१. एवं उड्डमहायताओ वि। .[७१] इसी प्रकार ऊर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए। ७२. लोयागाएसेढीओ णं भंते ! दव्वद्वत्ताए कि संखेजाओ, असंखेजाओ, अणंताओ? गोयमा ! नो संखेज्जाओ, असंखेजाओ, नो अणंताओ। [७२ प्र.] भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थ रूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [७२ उ.] गौतम ! वे संख्यात नहीं, अनन्त भी नहीं, किन्तु असंख्यात हैं। ७३. पाईणपडीणायताओ णं भंते ! लोयागससेढीओ दव्वट्ठत्ताए कि संखेजाओ० ? एवं चेव।
[७३ प्र.] भगवन् ! पूर्व और पश्चिम में लम्बी लोकाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[७३ उ.] गौतम ! पूर्ववत् (असंख्यात) हैं। ७४. एवं दाहिणुत्तरायताओ वि। [७४] इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर में लम्बी लोकाकाश की श्रेणियों के विषय में समझना चाहिए। ७५. एवं उड्डमहायताओ वि। [७५] इसी प्रकार ऊर्ध्व और अधो दिशा में लम्बी लोकाकाश की श्रेणियों के सम्बन्ध में जानना। ७६. अलोयागाससेढीओ णं भंते ! दव्वट्ठताए कि संखेजाओ असंखेजाओ० पुच्छा। गोयमा ! संखेजाओ, नो असंखेज्जाओ, अणंताओ। [७६ प्र. भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?