Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
९८. एवं अलोयागाससेढीओ वि। [९८] इसी प्रकार अलोकाकाश की श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए। ९९. सेढीओ णं भंते ! पएसट्ठयाए कि कडजुम्माओ०? एवं चेव। [९९ प्र.] भगवन् ! आकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। [९९ उ.] पूर्ववत् जानना चाहिए। १००. एवं जाव उड्डमहायताओ। [१००] इसी प्रकार यावत् ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों के विषय में कहना चाहिए। १०१. लोयागाससेढीओ णं भंते ! पएसट्ठयाए० पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्माओ, नो तेयोयाओ, सिय दावरजुम्माओ, नो कलिओयाओ। [१०१ प्र.] भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न।
[१०१ उ.] गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्म हैं और कदाचित् द्वापरयुग्म हैं, किन्तु न तो त्र्योज हैं और न कल्योज ही हैं।
१०२. एवं पादीणपडीणायताओ वि, दाहिणुत्तरायताओ वि।
[१०२] इसी प्रकार पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा दक्षिण-उत्तर लम्बी लोकाकाश की श्रेणियों के विषय में भी समझना चाहिए।
१०३. उड्डमहायताओ णं० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्माओ, नो तेयोगाओ, नो दावरजुम्माओ, नो कलियोगाओ। [१.०३ प्र.] भगवन् ! ऊर्ध्व और अधो लम्बी लोकाकाश की श्रेणियाँ कृतयुग्म हैं ? इत्यादि पूर्ववत्
प्रश्न।
[१०३ उ.] गौतम ! वे कृतयुग्म हैं, किन्तु न तो त्र्योज हैं, न द्वापरयुग्म हैं और न ही कल्योज हैं। १०४. अलोयागाससेढीओ णं भंते ! पदेसट्ठताए० पुच्छा। . गोयमा ! सिय कडजुम्माओ जाव सिय कलियोयाओ। [१०४ प्र.] भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । [१०४ उ.] गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं। १०५. एवं पाईणपडीणायताओ वि। [१०५] इसी प्रकार पूर्व-पश्चिम लम्बी अलोकाकाश श्रेणियों के विषय में समझना चाहिए। १०६. एवं दाहिणुत्तरायताओ वि। [१०६] दक्षिण-उत्तर लम्बी श्रेणियाँ भी इसी प्रकार हैं।