Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चित्र संख्या (१) ओज प्रदेशी घनत्र्यस्र का समुच्चय में आकार इस प्रकार है। चित्र संख्या (२) युग्मप्रदेशी घनत्र्यस्र। चित्र संख्या (३) ओज प्रदेश प्रतरत्र्यस्र । चित्र संख्या (४) युग्मप्रदेशी प्रतरत्र्यस्र।
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चित्र १. चित्र २. चित्र ३.
चित्र ४. ओजप्रदेशी घनचतुरस्त्र आदि चार भेद-ओजप्रदेशी घनचतुरस्र आदि चार २७ प्रदेशों का होता है। नौ प्रदेशों का प्रतर रखकर उस पर उसी प्रकार के दो प्रतर और रखने चाहिए।
|२.२ युग्मप्रदेशी घनचतुरस्र ८ प्रदेशों का है जो चतुष्प्रदेशी प्रतर के ऊपर दूसरा चतुष्प्रदेशी प्रतर रखने से होता है। इनके ऊपर न रखने से क्रमशः ओजप्रदेशी प्रतरचतुरस्र और
००००० यग्मप्रदेशी प्रतरचतरस्र संस्थान क्रमशः ९ और ४ प्रदेशों का होता
००० है। यथा
श्रेणी-आयत संस्थान–प्रदेशों की लम्बी श्रेणी को श्रेणी-आयत कहते हैं। जघन्य ओज-प्रदेशी श्रेणी-आयत संस्थान तीन प्रदेशात्मक होता है— 000 तथा युग्मप्रदेश श्रेणी-आयत द्विप्रदेशिक होता है-00
प्रतर-आयत : द्विविध—दो, तीन इत्यादि विष्कम्भ- श्रेणिरूप प्रतर-आयत कहलाता है।
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ओज प्रदेशिक प्रतर-आयत—जघन्य १५ प्रदेशों का है, यथा— 80000 और युग्मप्रदेशी
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प्रतर आयत ६ प्रदेशों का होता है यथा—868
घन-आयत : द्विविध—मोटाई और विष्कम्भसहित अनेक श्रेणियों को घन-आयत कहते हैं। ओज-प्रदेशिक घन-आयत प्रन्द्रह प्रकार के पूर्वोक्त प्रतर-आयत पर दूसरे दो उसी प्रकार के प्रतर-आयत रखने से जघन्य ४५ प्रदेशों का ओज-प्रदेशिक घन आयत होता है। यथा
युग्म-प्रदेशिक घन-आयत-छह प्रदेशों के युग्म प्रदेशिक प्रतर- आयत के ऊपर उसी प्रकार का दूसरा प्रतर-आयत रखने से १२ प्रदेशों का युग्म-प्रदेशिक घन-आयत होता है
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