Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[२९५ ततीओ उद्देसओ : 'संठाण'
तृतीय उद्देशक : 'संस्थान' संस्थान के ६ भेदों का निरूपण
१. कति णं भंते ! ठाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! छ संठाणा पन्नत्ता, तं जहा—परिमंडले वट्टे तंसे चउरंसे आयते अणित्थंथे। [१ प्र.] भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[१ उ.] गौतम ! संस्थान छह प्रकार के कहे गए हैं। यथा—(१) परिमण्डल, (२) वृत्त, (३) त्र्यस्र, (४) चतुरस्र, (५) आयत और (६) अनित्थंस्थ।
विवेचन संस्थान : प्रकार और स्वरूप संस्थान का अर्थ है आकार। जीव के जैसे छह संस्थान होते हैं, वैसे अजीवद्रव्य के भी छह संस्थान होते हैं। प्रस्तुत में अजीवसम्बन्धी छह संस्थानों का निरूपण है। परिमण्डल-चूड़ी सरीखा गोलाकार । वृत्त—कुम्हार के चाक जैसा गोल आकार। व्यस्त्र-सिंघाड़े सरीखा त्रिकोण आकार। चतुरस्त्र—बाजोट-सा चतुष्कोण आकार। आयत-लकड़ी जैसा लम्बा आकार। अनित्थंस्थ—अनियत आकार यानी परिमण्डल आदि से भिन्न विचित्र प्रकार की आकृति।' छह संस्थानों की द्व्यार्थ तथा प्रदेशार्थ रूप से अनन्तता-प्ररूपणा
२. परिमंडला णं भंते ! संठाणा दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता? गोयमा ! नो संखेजा, नो असंखेजा, अणंता। [२. प्र.] भगवन् ! परिमण्डल-संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [२ उ.] गौतम ! वे संख्यात नहीं हैं, असंख्यात भी नहीं हैं, किन्तु अनन्त हैं। ३. वट्टा णं भंते ! संठाणा०? एवं चेव। [३ प्र.] भगवन् ! वृत्त-संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? [३ उ.] गौतम ! ये भी पूर्ववत् (अनन्त) हैं। ४. एवं जाव अणित्थंथा। [४] इसी प्रकार अनित्थंस्थ-संस्थान पर्यन्त जानना चाहिए। ५. एवं पएसट्ठयाए वि, एवं दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए वि।'
[५] इसी प्रकार प्रदेशार्थरूप से भी जानना चाहिए तथा द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से भी। । विवेचन—निष्कर्ष—सभी प्रकार के संस्थान द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ तथा द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ (उभय) रूप १. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ७, पृ. ३२१६