Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पच्चीसवाँ शतक : प्राथमिक]
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आठवें उद्देशक में जीवों के आगामी भव में उत्पन्न होने का प्रकार तथा उनकी शीघ्र गति एवं गतिविषय की चर्चा की गई है। जीव परभव की आयु किस प्रकार बांधते हैं ? जीवों की गति क्यों और कैसे होती है ? तथा जीव आत्मऋद्धि से, स्वकर्मों से, आत्मप्रयोग (व्यापार) से उत्पन्न होते हैं या परऋद्धि, परकर्म या पर-प्रयोग से ? इसकी कर्मसिद्धान्तानुसार प्ररूपणा की गई हैं। नौवें उद्देशक में भी इसी प्रकार भवसिद्धिक (नैरयिकों से वैमानिकों तक के) जीवों की उत्पत्ति, शीघ्रगति, गति-विषय, गति-कारण, आयुबन्ध, स्वऋद्धि-स्वकर्म-स्वप्रयोग से उत्पत्ति आदि की प्ररूपणा की गई हैं। दसवें उद्देशक में चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की उत्पत्ति आदि के विषय में पूर्ववत् प्ररूपणा की गई है। ग्यारहवें उद्देशक में सम्यग्दृष्टि नैरयिकों से वैमानिकों तक के जीवों की (एकेन्द्रिय को छोड़ कर) उत्पत्ति आदि की पूर्ववत् चर्चा की है। बारहवें उद्देशक में मिथ्यादृष्टि नैरयिक आदि चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की उत्पत्ति आदि की पूर्ववत् चर्चा की है। इन उद्देशकों में प्रतिपादित तत्त्वज्ञान से मुमुक्षु साधक कर्मसिद्धान्त पर सम्यक् श्रद्धा करके जन्ममरण के चक्र से मुक्त होने के लिए स्वकृत कर्मों को स्वयं काटने के लिए पुरुषार्थ करता है। कुल मिलाकर पच्चीसवें शतक के बारह उद्देशकों में आत्मिक विकास में साधक-बाधक तत्त्वों की गहन चर्चा है।
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