Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में ग्रहण करता है, वे नियम से छहों दिशाओं में आए हुए होते हैं।
१४. एवं आहारगसरीरत्ताए वि। [१४] आहारकशरीर के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए। १५. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं तेयगसरीरत्ताए गिण्हति० पुच्छा ? गोयमा ! ठियाइं गेण्हइ, नो अठियाइं गेंण्हइ। सेसं जहा ओरालियसरीरस्स।
[१५ प्र.] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को तैजसशरीर के रूप में ग्रहण करता है .......... ? (इत्यादि पूर्ववत् पृच्छा)
[१५ उ.] गौतम ! वह (तैजसशरीर के) स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यों को नहीं। शेष औदारिकशरीर के सम्बन्ध में कथित वक्तव्यतानुसार समझना चाहिए।
१६. कम्मगसरीरे एवं चेव जाव भावओ वि गिण्हति। [१६] कार्मणशरीर के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए, यावत् भाव से भी ग्रहण करता है। १७. जाई दव्वाई दव्वओ गेण्हति ताई कि एगपएसियाइं गेण्हइ, दुपएसिगादं गेण्हइ० ? एवं जहा भासापदे जाव आणुपुल्विं गेण्हइ, नो अणाणुपुलिं गेहति।
[१७ प्र.] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को द्रव्य से ग्रहण करता है, वे एक प्रदेश वाले ग्रहण करता है या दो प्रदेश वाले ग्रहण करता है ? इत्यादि प्रश्न।
[१७ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के ग्यारहवें भाषापद में कहा गया है, तदनुसार आनुपूर्वी से (क्रमपूर्वक) ग्रहण करता है अनानुपूर्वी से (क्रमरहित) ग्रहण नहीं करता है, यहाँ तक कहना चाहिए।
१८. ताई भंते ! कतिदिसिं गेण्हति ? गोयमा ! निव्वाघाएणं० जहा ओरालियस्स। [१८ प्र.] भगवन् ! जीव कितनी दिशाओं से आए हुए द्रव्य ग्रहण करता है ?
[१८ उ.] गौतम ! निर्व्याघात हो तो छहों दिशाओं से आए हुए द्रव्यों को ग्रहण करता है, इत्यादि औदारिकशरीर से सम्बन्धित वक्तव्यतानुसार कहना।
१९. जीवे णं भंते ! जाइं दव्वाइं सोइंदियत्ताए गेण्हइ० ? जहा वेउब्वियसरीरं।
[१९ प्र.] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय रूप में ग्रहण करता है ............ ? (इत्यादि प्रश्न पूर्ववत्)।
[१९ उ.] गौतम ! वैक्रियशरीर-सम्बन्धी वक्तव्यता के समान जानो। २०. एवं जाव जिभिदियत्ताए।