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बहुत तुल्य या विशेषाधिक है ?
[९ उ.] गौतम ! (१) कार्मणशरीर का जघन्य काययोग सबसे अल्प है, (२) उससे औदारिकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (३) उससे वैक्रियमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (४) उससे औदारिक शरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (५) उससे वैक्रियशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (६) उससे कार्मणशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, (७) उससे आहारिकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (८) उससे आहारिकशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, (९-१०) उससे औदारिकमिश्र और वैक्रियमिश्र इन दोनों का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, और दोनों परस्पर तुल्य हैं । (११) उससे असत्यामृषामनोयाग का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। (१२) आहारकशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । (१३ से १९ तक) उससे तीन प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचनयोग, इन सातों का जघन्य योग असंख्यातगुणा है और परस्पर तुल्य है । (२०) उससे आहारकशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, (२१ से ३० तक) उससे औदारिकशरीर, वैक्रियशरीर, चार प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचनयोग, इन दस का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है और परस्पर तुल्य है ।
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरण करने लगे ।
॥ पच्चीसवाँ शतक : प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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