Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
[२७९
पढमो उद्देसओ : लेसा
प्रथम उद्देशक : लेश्या आदि का वर्णन लेश्याओं के भेद, अल्पबहुत्व आदि का अतिदेशपूर्वक निरूपण
२. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी[२] उस काल और उस समय में श्री गौतम स्वामी ने राजगृह में यावत् इस प्रकार पूछा३. कति णं भंते ! लेस्साओ पन्नत्ताओ ?
गोयमा ! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा—कण्हलेस्सा जहा पढमसए बितिउद्देसए ( स० १ उ० २ सु० १३) तहेव लेस्साविभागो अप्पाबहुगं च जाव चउव्विहाणं देवाणं चउव्विहाणं देवीणं मीसगं अप्पाबहुगं ति।
[३ प्र.] भगवन् ! लेश्याएँ कितनी कही गई है ?
[३ उ.] गौतम ! छह लेश्याएँ कही गई हैं। यथा कृष्णलेश्या आदि। शेष वर्णन इसी शास्त्र के प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक (श. १, उ. २, सू. १३) में जिस प्रकार किया गया है, तदनुसार यहाँ भी लेश्याओं का विभाग, उनका अल्पबहुत्व, यावत् चार प्रकार के देव और चार प्रकार की देवियों के मिश्रित (सम्मिलित) अल्पबहुत्व-पर्यन्त जानना चाहिए।
विवेचन-लेश्याओं का पुनः वर्णन क्यों—प्रश्न होता है कि प्रथम शतक में लेश्याओं के स्वरूप, प्रकार आदि का वर्णन किया गया है, फिर इस शतक के प्रथम उद्देशक में उसका पुन: वर्णन क्यों किया गया है ? वृत्तिकार समाधान करते हैं, कि अन्य प्रकरण के साथ इस (लेश्या) का सम्बन्ध होने से उस प्रकरण के साथ लेश्या और उनके अल्पबहुत्व का कथन पुनः किया गया है। प्रज्ञापनासूत्र में भी इसी प्रकार का वर्णन मिलता है। संसारी जीवों के चौदह भेदों का निरूपण
४. कतिविधा णं भंते ! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता ?
गोयमा ! चोद्दसविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा—सुहमा अपज्जत्तगा १ सुहुग्ण पज्जत्तगा २ बायरा अपज्जत्तगा ३ बादरा पजत्तगा ४ बेइंदिया अपजतगा ५ बेइंदिया पज्जत्तगा ६ एवं तेइंदिया ७-८ एवं चउरिदिया ९-१० असन्निपंचेंदिया अपज्जत्तगा ११ असन्निपंचेंदिया पज्जतगा १२ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८५२
(ख) श्रीमद्भगवतीसूत्र खण्ड १. शतक १. उ. २. सूत्र. १३, पृ. १०४ (ग) प्रज्ञापनासूत्र पद १७. उ. २. पत्र ३४३-३४९