Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक-२३]
[२५९ ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होनेवाले असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के उपपातादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
३. असंखेजवासाउयसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जोतिसिएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवति?
गोयमा ! जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमद्वितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमवाससहस्सट्ठितीएसु उवव० । अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए, नवरं ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। एवं अणुबंधो वि। सेसं तहेव, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं दो अट्ठभागपलिओवमाइं, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं वाससयसहस्समब्भहियाइं; एवतियं०। [पढमो गमओ]
[३ प्र.] भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक, जो ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होता है ?
। [३ उ.] गौतम ! वह जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम. की स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है। शेष असुरकुमार-उद्देशक के अनुसार जानना। विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है । अनुबन्ध भी इसी प्रकार होता है। शेष पूर्ववत् । विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से जघन्य दो आठवें भाग (१) भाग और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम, यावत् इतने काल गमनागमन करता है। [प्रथम गमक]
४. सो चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि अट्ठभागपलिओवमट्टितीएसु। एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसं जाणेजा। [बीओ गमओ]
[४] यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च), जघन्य काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के आठवें भाग की स्थिति वाले ज्योतिष्कों में उत्पन्न होता है, इत्यादि वही पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ कालादेश (भिन्न) जानना चाहिए। [द्वितीय गमक]
५.सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं ठिती जहन्नेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई। एवं अणुबंधो वि। कालाएसेणं जहन्नेणं दो पलिओवमाइं दोहिं वाससयसहस्सेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाइं वाससयसहस्समब्भहियाइं०। [तइओ गमओ]।
[५] यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च), उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न हो, तो यही (पूर्वोक्त वक्तव्यता) कहनी चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति जघन्य एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी समझना, कालादेश सेजघन्य दो लाख वर्ष अधिक दो पल्योपम और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक चार पल्योपम (यावत् इतने काल गमनागमन करता है।) [तृतीय गमक]