Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र संखेजवासाउयाणं जहवे असुरकुमारेसु उववजमाणाणं तहेव नव वि गमगा भाणिय वा, नवरं जोतिसियठिति संवेहं च जाणेजा। सेसं तहेव निरवसेसं।
[९ प्र.] भगवन् ! यदि वह (ज्योतिष्क देव) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च से आकर उत्पन्न हो तो?
[९ उ.] यहाँ असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के समान नौ ही गमक जानने चाहिए। विशेष यह है कि ज्योतिष्क की स्थिति और संवेध भिन्न जानना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् समझना। [गमक १ से ९ तक]
विवेचन—संख्येय वर्षायुष्क तिर्यञ्च-सम्बन्धी अतिदेश–यहाँ संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने वाले ज्योतिष्क देवों के नौ गमकों के लिए असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के नौ गमकों का अतिदेश किया गया है। केवल स्थिति और संवेध में अन्तर है। ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों में उपपात आदि वीस द्वारों की प्ररूपणा
१०. जदि मणुस्सेहिंतो उववजंति० ? भेदो तहेव जाव[१० प्र.] (भगवन् ! ) यदि वे (ज्योतिष्क देव) मनुष्यों से आकर उत्पन्न हों तो ? (इत्यादि प्रश्न)।
[१० उ.] (गौतम ! ) पूर्वोक्त संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च के समान जानना चाहिए। पूर्ववत् मनुष्यों के भेदों का उल्लेख करना चाहिए।
११. असंखेजवासाउयसन्निमणुस्स णं भंते ! जे भविए जोतिसिएसु उववजिए से णं भंते ! ०?
एवं जहा असंखेजवासाउयसन्निपंचेंदियस्स जोतिसिएसु चेव उववजमाणस्स सत्त गमगा तहेव मणुस्साण वि, नवरं ओगाहणाविसेसो—पढमेसु तिसु गमएसु ओगाहणा जहन्नेणं सातिरेगाइं नव धणुसयाई, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाई। मज्झिमगए जहन्नेणं सातिरेगाइं नव धणुसयाई, उक्कोसेण वि सातिरंगाइं नव धणुसयाइं। पच्छिमेसु तिसु गमएसु जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिन्नि गाउयाई। सेसं तहेव निरवसेसं जाव संवेहो त्ति। _ [११ प्र.] भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, जो ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होता है ?
[११ उ.] (गौतम ! ) जिस प्रकार ज्योतिष्कों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च के सात गमक कहे गये हैं, उसी प्रकार यहाँ मनुष्य के विषय में भी समझना। प्रथम के तीन गमकों में अवगाहना की विशेषता है। उनकी अवगाहना जघन्य सातिरेक नौ सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है। मध्य के तीन गमक में जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक नौ सौ धनुष होती है तथा अन्तिम तीन गमकों में जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है। शेष संवेध तक पूर्ववत् जानना चाहिए। १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. २, पृ. ९६३