Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
चौवीसवाँ शतक : उद्देशक- २४ ]
[ २६७
उत्पन्न होने वाले यौगलिक मनुष्य और तिर्यञ्च में सिर्फ एक मिथ्यादृष्टि ही बताई है तथा सम्यग्दृष्टि मनुष्य और तिर्यञ्च एकमात्र वैमानिक देव की आयु का बन्ध करते हैं।
सौधर्म देव में उत्पन्न होने वाले असंख्येय-संख्येय- वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों के उपपातादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
९. जदि मणुस्सेहिंतो उववज्जंति ?
भेदो जहेव जोतिसिएस उववज्जमाणस्स जाव—
[९ प्र.] यदि वह (सौधर्मदेव) मनुष्यों से आकर उत्पन्न हो तो ?
[९ उ.] ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों की वक्तव्यता के समान यहाँ भी कहनी चाहिए। १०. असंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जित्तए० ?
एवं जहेव असंखेज्जवासाउयस्स सन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स सोहम्मे कप्पे उववज्जमाणस्स तहेव सत्त गमगा, नवरं आदिल्लएसु दोसु गमएस ओगाहणा जहन्नेणं गाउयं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउय्राइं। ततियगमे जहन्त्रेणं तिन्नि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिन्नि गाउयाई । चउत्थगमए जहन्त्रेणं गाउयं, उक्कोसेण वि गाउयं । पच्छिमेसु गमएसु जहन्त्रेणं तिन्नि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिन्नि गाउयाई । सेसं तहेव निरवसेसं । [ १- ९ गमगा ]
[१० प्र.] भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, जो सौधर्म कल्प में देवरूप से उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मकल्प के देवों में उत्पन्न होता है ?
[१० उ. ] सौधर्मकल्प में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक के समान सातों ही गमक जानने चाहिए। विशेष यह है कि प्रथम के दो गमकों में अवगाहना जघन्य एक गाऊ की और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है। तीसरे गमक में जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ, चौथे गमक में जघन्य और उत्कृष्ट एक गाऊ और अन्तिम तीन गमकों में जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ की अवगाहना होती है। शेष पूर्ववत् । [१-९ गमक ]
११. जदि संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहिंतो० ?
एवं संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्साणं जहेवं असुरकुमारेसु उववज्जमाणाणं तहेव नव गमगा भाणियव्वा, नवरं सोहम्मदेवट्ठिर्ति संवेहं च जाणेज्जा | सेसं तं चेव ।
[११ प्र.] यदि वह (सौधर्म देव) संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है तो ? ( इत्यादि प्रश्न) ।
[११ उ.] असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों के समान नौ गमक कहने चाहिये। विशेष यह है कि सौधर्म देव की स्थिति और संवेध ( उससे भिन्न) समझना चाहिए।
विवेचन — सौधर्म देवों में उत्पन्न मनुष्यों की वक्तव्यता का निष्कर्ष - सौधर्म देवों में उत्पद्यमान मनुष्यों की वक्तव्यता इस प्रकार है- (१) वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी मनुष्यों से नहीं,