Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र उत्कृष्ट दो पल्योपम, यावत् इतने काल गमनागमन करता है। [गमक ४-५-६]
७. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, आदिल्लगमगसरिसा तिन्नि गमगा नेयव्वा, नवरं ठिति कालदेसं च जाणेजा।[७-८-९ गमगा]।
[७] यदि वह (असंख्येय संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो और सौधर्म देवों में उत्पन्न हो, तो उसके अन्तिम तीन गमकों (७-८-९) का कथन प्रथम के तीन गमकों के समान जानना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और कालादेश (भिन्न) जानना चाहिए। [गमक ७-८-९]
८. जदि संखेजवासाउयसन्निपंचेंदिय०? ।
संखेजवासाउयस्स जहेव असुरकुमारेसु उववजमाणस्स तहेव नव वि गमा, नवरं ठिति संवेहं च जाणेजा। जाहे य अप्पणा जहन्नकालद्वितीओ भवति ताहे तिसु वि गमएसु समट्ठिी वि, मिच्छाद्दिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। दो नाणा, दो अन्नाणा नियम। सेसं तं चेव।
[८ प्र.] यदि वह सौधर्म देव, संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न हो तो? इत्यादि प्रश्न।
[८ उ.] असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च के समान ही इसके नौ ही गमक जानने चाहिए। किन्तु यहाँ स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए। जब वह स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो तो तीनों गमकों में सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होता है, किन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होता। इसमें दो ज्ञान या दो अज्ञान नियम से होते हैं। शेष पूर्ववत्। __विवेचन—स्थिति एवं अवगाहना आदि के विषय में स्पष्टीकरण—(१) सौधर्म देवलोक में जघन्य स्थिति पल्योपम से कम नहीं होती, इसलिए वहाँ उत्पन्न होने वाला जीव, जघन्य पल्योपम की तथा उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति में उत्पन्न होता है । यद्यपि सौधर्म देवलोक में इससे भी बहुत अधिक स्थिति है, तथापि यौगलिक तिर्यञ्च उत्कृष्ट तीन पल्योपम की आयु वाले ही होते हैं । अत: वे इससे अधिक देवायु का बन्ध नहीं करते। दो पल्योपम का जो कथन किया है, उसमें से एक पल्योपम तिर्यञ्चभव-सम्बन्धी और एक पल्योपम देशभव-सम्बन्धी समझना चाहिए तथा उत्कृष्ट ६ पल्योपम का जो कथन है, उसमें तीन पल्योपम तिर्यञ्चभव और तीन पल्योपम देशभव के समझने चाहिए। (२) जघन्य अवगाहना जो धनुषपृथक्त्व कही है, वह क्षुद्रकाय चौपाये (छोटे शरीर वाले चतुष्पद) की अपेक्षा समझनी चाहिए और उत्कृष्ट दो गाऊ की कही है, वह जिस काल और जिस क्षेत्र में एक गाऊ के मनुष्य होते हैं, उस क्षेत्र के हाथी आदि की अपेक्षा समझनी चाहिए। (३) संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च के अधिकार में मिश्रदृष्टि का निषेध किया है, क्योंकि जघन्य स्थिति वाले में मिश्रदृष्टि नहीं होती। उत्कृष्ट स्थिति वालों में तीनों दृष्टियाँ होती हैं। यही तथ्य ज्ञान और अज्ञान के विषय में समझना चाहिए। यौगलिक तिर्यञ्च और मनुष्य (जो सौधर्म देवों में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क हैं), उनमें भी दो ही दृष्टियाँ पाई जाती हैं । किन्तु भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क में
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८५१
(ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ६, पृ. ३१८१-८२