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तेवीसइमो : जोतिसिय-उद्देसओ
तेईसवाँ : ज्योतिष्क-उद्देशक गति की अपेक्षा ज्योतिष्क देवों के उपपात का निरूपण
१. जोतिसिया णं भंते ! कओहिंतो उववजंति ? किं नेरइए?
भेदो जाव सन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, नो असन्निपंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो उवव०॥
[१ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[१ उ.] गौतम ! (वे नारकों और देवों से नहीं, किन्तु तिर्यञ्चों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, अतः तिर्यञ्च के) भेद कहना, यावत्-वे संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं।
२. जदि सन्नि० किं संखेजे०, असंखेज.? गोयमा ! संखेजवासाउय०, असंखेजवासाउय०।
[२ प्र.] भगवन् ! यदि वे (ज्योतिष्क देव) संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात-वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से उत्पन्न होते हैं ?
[२ उ.] गौतम ! वे संख्यातवर्ष की और असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं।
विवेचन-ज्योतिष्कों की उत्पत्ति का निष्कर्ष-(१) ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर ज्योतिष्करूप में उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में शास्त्रकार अन्यत्र कहते हैं—वे नारकों और देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते, किन्तु तिर्यञ्चों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं । तिर्यञ्चों में भी वे एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न नहीं होते, किन्तु संख्यातवर्ष की तथा असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं। १. भगवतीसूत्र (प्रमेयचन्द्रिका टीका) भाग-१५. पृ. ४३३-४३४