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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[३] यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है, तो नागकुमार के दूसरे गमक में कही हुई वक्तव्यता जाननी चाहिए। [द्वितीय गमक]
४. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं पलिओवमद्वितीएसु, उक्कोसेण वि पलिओवमट्टितीएसु। एस चेव वत्तव्वया, नवरं ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिआवमाइं। संवेहो जहन्नेणं दो पलिओवमाई, उक्कोसेणं चत्तारि पलिओवमाई; एवतियं०।[तइओ गमओ]।
[४] यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले वणव्यन्तरों में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है, इत्यादि वक्तव्यता पूर्ववत् जानना। स्थिति जघन्य दो पल्योपम
और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की जाननी चाहिए। संवेध-जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट चार पल्योपम, इतने काल तक गमनागमन करता है। [तृतीय गमक]
५. मज्झिमगमगा तिन्नि वि जहेव नागकुमारेसु। [४-६ गमगा]। [५] मध्य के तीन गमक नागकुमार के तीन मध्य गमकों के समान कहने चाहिए। [४-५-६]
६. पच्छिमेसु तिसु गमएसु तं चेव जहा नागकुमाररुद्देसए, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज। [७-९ गमगा]।
[६] अन्तिम तीन गमक भी नागकुमार-उद्देशक में कहे अनुसार कहने चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और संवेध भिन्न-भिन्न जानना चाहिए। [गमक ७-८-९]
७. संखेजवासाउय० तहेव, नवरं ठिति अणुबंधो, संवेहं च उभओ ठितीए जाणेजा। [१-९ गमगा]
[७] संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों की वक्तव्यता भी उसी प्रकार जाननी चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और अनुबंध भिन्न है तथा संवेध, दोनों की स्थिति को मिला कर कहना चाहिए। [गमक १ से ९ तक]
विवेचन—कुछ स्पष्टीकरण-(१) वाणव्यन्तर देवों के प्रकरण में असंख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रियों के अधिकार में उत्कृष्ट चार पल्योपम का जो कथन किया गया है, वह संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम और वाणव्यन्तर देव की एक पल्योपम, इस प्रकार दोनों की स्थिति को मिलाकर चार पल्योपम का संवेध जानना चाहिए। (२) नागकुमार के दूसरे गमक की वक्तव्यता प्रथम गमक के समान है। परन्तु यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति दस हजार वर्ष की जाननी चाहिए। (३) संवेधकालादेश से जघन्य १० हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष अधिक तीन पल्योपम का जानना चाहिए।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८४६