Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२४६]
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेजा उववजंति, जहा तहिं अंतोमुहुत्तेहिं तहा इहं मासपुहत्तेहिं संवेहे करेजा। से सं तं चेव।
[३] शेष वक्तव्यता पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक में उत्पन्न होने वाले रत्नप्रभा के नैरयिक के समान जानना चाहिए। परिमाण में विशेष यह है कि वे जघन्य एक, दो या तीन, अथवा उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं, वहाँ तो अन्तर्मुहूर्त के साथ संवेध किया था, किन्तु यहाँ मासपृथक्त्व के साथ संवेध करना चाहिए। शेष पूर्वकथित-अनुसार जानना चाहिए।
४. जहा रयणप्पभाए तहा सक्करप्पभाए वि वत्तव्वया, नवरं जहन्नेणं वासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडि० । ओगाहणा-लेस्सा-नाण-ट्ठिति-अणुबंध-संवेहनाणत्तं च जाणेजा जहेव तिरिक्खजोणियउद्देसए ( उ० २० सू. ८-९) एवं जाव तमापुढविनेरइए।
__ [४] रत्नप्रभा की वक्तव्यता के समान शर्कराप्रभा की भी वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि जघन्य वर्षपृथक्त्व की तथा उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। अवगाहना, लेश्या, ज्ञान, स्थिति, अनुबंध और संवेध का नानात्व (विशेषता) तिर्यञ्चयोनिक-उद्देशक (उ. २०, सू. ८९) में कहे अनुसार जानना। इस प्रकार तम:प्रभापृथ्वी के नैरयिक तक जानना चाहिए।
विवेचन—मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले नारकों के सम्बन्ध में-(१) रत्नप्रभापृथ्वी के नारक यदि मनुष्यायु का बंध करते हैं, तो वे मासपृथक्त्व (दो महीने से नौ महीने तक) से कम आयु का बन्ध नहीं करते, क्योंकि उनमें तथाविध परिणाम का अभाव होता है। इसी प्रकार अन्यत्र भी (आगे की नरक पृथ्वियों में भी) यही कारण समझना चाहिए। (२) परिमाणद्वार में विशेष—नारक, सम्मूछिम मनुष्यों में नहीं उत्पन्न होते हैं। गर्भज संख्यात हैं, इसलिए वे (नारक) संख्यात ही उत्पन्न होते हैं। रत्नप्रभापृथ्वी से आकर पंचेन्द्रियतिर्यञ्च में उत्पन्न होने वालों की जघन्य स्थिति पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च-उद्देशक (२० वें उद्देशक) में अन्तर्मुहूर्त बताई है, अतः अन्तर्मुहूर्त के साथ संवेध किया है, किन्तु यहाँ मनुष्य-उद्देशक (उ. २१) में मनुष्यों की जघन्य स्थिति को लेकर मासपृथक्त्व के साथ संवेध किया है, क्योंकि काल की अपेक्षा से जघन्य मासपृथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष है।
(४) शर्कराप्रभा आदि की समग्र वक्तव्यता पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च उद्देशक के अनुसार जाननी चाहिए।' मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले अग्नि-वायुकाय के सिवाय एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय-पंचेन्द्रियतिर्यंच-मनुष्यों के उत्पाद-परिमाणादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
___५. जति तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति, जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो उवव०।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८४५