Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक- २१]
[१८ प्र.] भगवन् ! वे (मनुष्य) एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[१८ उ.] ( गौतम ! ) जिस प्रकार सहस्रारदेवों की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार यहाँ भी कहनी चाहिए। परन्तु इनकी अवगाहना, स्थिति और अनुबन्ध के विषय में भिन्नता जाननी चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जाना । भव की अपेक्षा से— जघन्य दो भव और उत्कृष्ट छह भव ग्रहण करते हैं तथा काल की अपेक्षा सेजघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक सत्तावन सागरोपम, इतने काल तक गमनागमन करता है। इसी प्रकार नौ ही गमकों में जानना चाहिए। विशेष यह है कि इनकी स्थिति, अनुबन्ध और संवेध भिन्न-भिन्न जानना चाहिए।
१९. एवं जाव अच्चुयदेवो, नवरं ठिर्ति अणुबंधं संवेहं च जाणेज्जा । पाणयदेवस्स ठिति तिउणासट्ठि सागरोवमाई, आरणगस्स तेवट्ठि सागरोवमाई, अच्चुयदेवस्स छावट्ठि सागरोवमाई ।
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[१९] इसी प्रकार अच्युतदेव तक जानना चाहिए । विशेष यह है कि इनकी स्थिति, अनुबन्ध और संवेध, भिन्न-भिन्न जानने चाहिए। प्राणतदेव की स्थिति को तीन गुणी करने पर साठ सागरोपम, आरणदेव की स्थिति को तीन गुणी करने पर तिरेसठ (६३) सागरोपम और अच्युतदेव की स्थिति को तीन गुणी करने पर छासठ (६६) सागरोपम की हो जाती है ।
२०. जदि कप्पातीतवेमाणियदेवेहिंतो उवव० किं गेवेज्जकप्पातीत०, अणुत्तरोववातियकप्पातीतं० ?
गोयमा ! गेवेज्ज० अणुत्तरोववा० ।
[२० प्र.] भगवन् ! यदि वे मनुष्य कल्पातीत- वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या ग्रैवेयककल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा अनुत्तरौपपातिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? (मनुष्य) ग्रैवेयक और अनुत्तरौपपातिक दोनों प्रकार के कल्पातीत देवों से आ
[२०] गौतम ! उत्पन्न होते हैं।
२१. जइ गेवेज्ज० किं हेट्ठिमहेट्ठिमगेवेज्जकप्पातीत० जाव उवरिमउवरिमगेवेज्ज० ? गोयमा ! हेट्ठिमहेट्ठिमगेवेज्ज० जाव उवरिमउवरिम० ।
[२१] यदि वे (मनुष्य), ग्रैवेयक- कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे अधस्तनअधस्तन (सबसे नीचे के) ग्रैवेयक -कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् उपरितन - उपरितन (सबसे ऊपर के ग्रैवेयक -कल्पातीत देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[२१ उ.] गौतम ! वे (मनुष्य), अधस्तन - अधस्तन यावत् उपरितन- उपरितन ग्रैवेयेक-कल्पातीत देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं ।
२२. गेवेज्जगदेवे णं भंते ! जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवतिका० ?
गोयमा ! जहन्नेणं वासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडि० । अवसेसं जहा आणयदेवस्स वत्तव्वया, नवरं ओगाहणा, गोयमा ! एगे भवधारणिजे सरीरए से जहन्त्रेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दो रयणीओ। संठाणं गोयमा । एगे भवधारणिज्जे सरीरए से समचउरंससंठिते पन्नत्ते । पंच