Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
२४० ]
[५१ उ.] गौतम ! वे भवनवासी देवों से, यावत् वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं।
विवेचन — निष्कर्ष — संज्ञी पंचेन्द्रिय - तिर्यञ्च, भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक, चारों प्रकार के देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ।
पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों में उत्पन्न होने वाले भवनवासी देवों के उत्पाद- परिमाणादि वीस द्वारों
की प्ररूपणा
५२. जदि भवणवासी० किं असुरकुमारभवण० जाव थणियकुमारभवण० ?
गोयमा ! असुरकुमार० जाव थणियकुमारभवण० ।
[५२ प्र.] ( भगवन् ! ) यदि वे ( संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे असुरकुमार अथवा यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[५२ उ.] गौतम ! वे असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। ५३. असुरकुमारे णं भंते ! जे भविए पंचिदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवति० ?
गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु उवव० । असुरकुमाराणं लद्धी नवसु वि गमएसु जहा पुढविकाइएसु उववज्जमाणस्स एवं जाव ईसाणदेवस्स तहेव लगी । भवासेणं सव्वत्थ अट्ठ भवग्गहणाई उक्कोसेणं, जहन्नेणं दोन्नि भव० । ठिर्ति संवेहं च सव्वत्थ जाणेज्जा ।
[५३ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार, जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ?
[५३ उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है । उसके नौ ही गमकों में जो वक्तव्यता पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले असुरकुमारों की कही है, वैसी ही वक्तव्यता यहाँ कहनी चाहिए। इसी प्रकार ईशान देवलोक पर्यन्त वक्तव्यता कहनी चाहिए। भवादेश से — सर्वत्र उत्कृष्टतः आठ भव और जघन्यतः दो भव ग्रहण करता है । सर्वत्र स्थिति और संवेध भिन्न-भिन्न समझना चाहिए।
५४. नागकुमारे णं भंते ! जे भविए० ? एस चेव वत्तव्वया, नवरं ठिर्ति संवेधं च जाणेज्जा ।
[५४ प्र.] भगवन् ! नागकुमार, जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वह कितने काल की स्थिति वाले (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों) में उत्पन्न होता है ?
[५४ उ.] गौतम ! यहाँ भी पूर्वोक्त समस्त वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि स्थिति और संवेध भिन्न जानना ।