Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक- २० ]
[ २३९
४९. सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एसा चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्त्रेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ० । [ अट्टमो गमओ ]।
तो [४९] यदि वह (संज्ञी मनुष्य) जघन्यकाल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न भी यही (पूर्ववत्) वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि, ( यावत् इतने काल गमनागमन करता है।) [ अष्टम गमक ]
५०. सो चेव उक्कोसकालठ्ठितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं तिपलिओवमा, उक्कोसेण वि तिपलिओवमा । एस चेव लद्धी जहेव सत्तमगमे । भवाएसेणं दो भवग्गहणाईं। कालाएसेणं जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाई; उक्कोसेणं वि तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, एवतियं ० । [ नवमो गमओ ]
[५० ] यदि (संज्ञी मनुष्य) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होता है। यहाँ पूर्वोक्त सप्तम नमक की वक्तव्यता कहनी चाहिए। भवादेश से —— जघन्य दो भव ग्रहण करता है तथा कालादेश से. जघन्य पूर्वकोटि- अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम, यावत् इतने काल गमनागमन करता है । [ नौवां गमक ]
विवेचन—स्पष्टीकरण - (१) असंख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य देव में ही उत्पन्न होते हैं, तिर्यञ्च आदि में नहीं । (२) पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च के तीसरे गमक में अवगाहना और स्थिति के विषय में जो विशेषता बताई गई है, उससे स्पष्ट है कि अंगुलपृथक्त्व (दो अंगुल से नौ अंगुल तक) से कम अवगाहना वाला और मासपृथक्त्व (दो मास से नौ मास तक ) से कम स्थिति वाला मनुष्य, उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न नहीं होता । (३) संज्ञी मनुष्य के मध्य के तीन गमक के परिमाण में उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं, क्योंकि संज्ञी मनुष्य संख्यात ही हैं, इसलिए वे उत्कृष्ट रूप से भी संख्यात ही उत्पन्न होते हैं ।
देवों से पंचेन्द्रिय - तिर्यञ्चों में उत्पत्ति का निरूपण.
५१. जदि देवेहिंतो उवव० किं भवणवासिदेवेहिंतो उवव०, वाणमंतर०, जोतिसिय०, वेमाणियदेवेहिंतो० ?
गोयमा ! भवणवासिदेवे० जाव वेमाणियदेवे० ।
[५१ प्र.] यदि देवों से आकर वे (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
१. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ६, पृ. ३१४०