Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौवीसवाँ शतक : उद्देशक..
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[४१ प्र.] भगवन् ! यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है तो, क्या वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है ?
[४१ उ.] गौतम ! वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है, असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होता है।
४२. जदि संखेज० किं पजत्ता० अपज्जत्ता०? गोयमा ! पज्जत्त०, अपज्जत्त०।
[४२ प्र.] भगवन् ! यदि वह (संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्तक संज्ञी मनुष्यों से या अपर्याप्तक संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता
[४२ उ.] गौतम ! वह पर्याप्तक और अपर्याप्तक दोनों प्रकार के संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है।
४३. संखेजवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख० उववजित्तए से णं भंते ! केवति०? ___ गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुत्त०, उक्कोसेणं तिपलिओवमद्वितीएसु उवव०।
[४३ प्र.] भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, जो पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है ?
[४३ उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतियञ्चों में उत्पन्न होता है।
४४. ते णं भंते ! ०?
लद्धी से जहा एयस्सेव सन्निमणुस्सस्स पुढविकाइएसु उववजमाणस्स पढमगमए जाव भवादेसो त्ति। कालाएसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुत्ता, उक्कोसेणं तिनि पलिओवमाइं पुवकोडिपुहत्तमब्भहियाइं०। [ पढमो गमओ]
[४४ प्र.] भगवन् ! वे जीव (संज्ञी मनुष्य) एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[४४ उ.] (गौतम ! ) पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले इसी संज्ञी मनुष्य की प्रथम गमक में कही हुई वक्तव्यता—भवादेश तक कहनी चाहिए। कालादेश से—जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम (यावत् इतने काल गमनागमन करता है।) [प्रथम गमक]
४५. सो चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं, चत्तारि पुवकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ०।[बीओ गमओ]
[४५] यदि वह (संज्ञी मनुष्य) जघन्यकाल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हो, तो उसके लिए यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु कालादेश से-जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष, यावत् इतने काल गमनागमन करता है। [द्वितीय गमक]