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चौवीसवां शतक : उद्देशक-२०]
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[३६] यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वालो हो, तो उसके विषय में प्रथम गमक के समान कहना चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष कहना चाहिए। कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्षपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। [सप्तम गमक]
३७. सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चाहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ [अट्ठमो गमओ]।
[३७] यदि वह (उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) जघन्य काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि कालादेश से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि यावत् इतने काल गति-आगति करता रहता है। [अष्टम गमक]
३८. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववनो, जहन्नेणं तिपलिओवमट्टितीएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमद्वितीएसु। अवसेसं तं चेव, नवंर परिमाणं ओगाहणा य जहा एयस्सेव ततियगमए। भवाएसेणं दो भवग्गहणाई। कालाएसेणं जहन्नेणं तिण्णि पलिओवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाइं; एवतियं०। [नवमो गमओ]
[३८] यदि वह (उत्कृष्टकाल की स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हो तो वह जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तियञ्चों में उत्पन्न होता है। शेष सब पूर्वोक्त कथनानुसार जानना। विशेष यह है कि परिमाण
और अवगाहना इसी के तीसरे गमक में कहे अनुसार समझना। भवादेश से—दो भव और कालादेश सेजघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-अधिक तीन पल्योपम, यावत् इतने काल गति-आगति करता रहता है। [नौवां गमक]
विवेचनविशेष तथ्यों का स्पष्टीकरण—(१) संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च, संख्यात-वर्ष की आयु वाले पर्याप्तकों एवं अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं । (२) वह तीन पल्योपम की स्थिति तक में उत्पन्न हो सकते हैं । (३) संख्यात ही क्यों?— उत्कृष्ट स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च असंख्यात वर्ष की आयु वाले ही होते हैं और वे (परिमाण में) संख्यात होने से उत्कृष्ट रूप से भी संख्यात ही उत्पन्न होते हैं। (४) अवगाहना—संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न होने वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की आवगाहना, रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले संज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के समान नहीं होती, क्योंकि वहाँ संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च की अवगाहना केवल सात धनुष की बतलाई गई है, जबकि यहाँ उत्कृष्टतः एक हजार योजन की है, यह मत्स्य आदि की अपेक्षा से कही गई है। (५) संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च से आता हो तो भी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए। पहले और सातवें गमक में कालादेश सात पूर्वकोटि अधिक तीन पल्योपम होता है। तीसरें और नौवें गमक में उत्कृष्ट संख्यात ही उत्पन्न होते हैं और भव भी दो ही होते हैं । अत: दो भवों का ही कालादेश कहना चाहिए। शेष गमकों में यौगलिक पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च नहीं होते। अत: उनकी स्थिति का आकलन विचारपूर्वक