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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
करना चाहिए। मनुष्य की अपेक्षा पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पत्तिनिरूपण
३९. जदि मणुस्सेहिंतो उववजति किं सण्णिमणु०, असण्णिमणु० ? गोयमा ! सण्णिमणु०, असण्णिमणु०।
[३९] भगवन् ! यदि संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च, मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं ?
[३९] गौतम ! वे संज्ञी और असंज्ञी—दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं।
विवेचन—निष्कर्ष-संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च, संज्ञी और असंज्ञी-दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी मनुष्यों में उत्पादादि वीस द्वारों की प्ररूपणा
४०. असन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचेंदियतिरिक्ख० उवव० से णं भंते ! केवतिकालं?
गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोड़िआउएसु उववज्जति। लद्धी से तिसु वि गमएसु जहेव पुढविकाइएसु उववजमाणस्स, संवेहो जहा एत्थ चेव असन्निस्स पंचेंदियस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु तहेव निरवसेसो भाणियव्वो।
[४० प्र.] भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, जो पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है ?
[४० उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है। पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी मनुष्य की प्रथम के तीन गमकों में जो वक्तव्यता कही है, उसके अनुसर यहाँ भी प्रथम के तीन गमकों में कहनी चाहिए। जिस प्रकार असंज्ञीपंचेन्द्रिय के मध्यम तीन गमकों में संवेध कहा है, उसी प्रकार सब यहाँ भी कहना चाहिए।
विवेचन असंज्ञी मनुष्यों में आद्य तीन ही गमक-असंज्ञी मनुष्य के विषय में नौ गमकों में से आदि के तीन गमक ही सम्भव हैं, क्योंकि असंज्ञी मनुष्य की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की ही होने से ये तीन ही गम हो सकते हैं, शेष छह गम नहीं होते। पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों से उत्पन्न होने वाले संज्ञी मनुष्य में उत्पाद-परिमाण आदि द्वार
४१. जई सण्णिमणुस्स० किं संखेजवासाउयसण्णिमणुस्स० असंखेजवासाउयसण्णिमणुस्स०?
गोयमा ! संखेजवासाउय०, नो असंखेजवासाउय० ।
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८४१
(ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ६, पृ. ३१३४ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ८४१