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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[१९] द्वितीय गमक में भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि कालादेश सेजघन्य दो अन्तर्मुहूर्त, और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक चार पूर्वकोटि, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। द्वितीय गमक]
२०. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखेजतिभागद्वितीएसु, उक्कोसेणं वि पलिओवमस्स असंखेजतिभागट्ठितीएसु उवव०। ___ [२०] यदि वह (असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च), उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है।
२१. ते णं भंते ! जीवा०।
एवं जहा रयणप्पभाए उववजमाणस्स असन्निस्स तहेव निरवसेसं जाव कालादेसो ति, नवरं परिमाणे-जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेजा उववजंति। सेसं तं चेव। [तइओ गमओ]।
[२१ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[२१ उ.] जैसे रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार की वक्तव्यता यहाँ कालादेश तक कहनी चाहिए। परन्तु परिमाण के सम्बन्ध में विशेष यह है कि वह जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। शेष सब पूर्ववत् जानना। [तृतीय गमक]
२२. सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, जहन्नेणं अंतोमुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु उवव०।
[२२] यदि वह स्वयं (असंज्ञी पं. तिर्यञ्च) जघन्यकाल की स्थिति वाला हो, तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति वाले संज्ञी पॅचेन्द्रिय-तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है।
२३. ते णं भंते ! ०?
अवसेसं जहा एयस्स पुढविकाइएसु उववजमाणस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु तहा इह वि मज्झिमेसु तिसु गमएसु जाव अणुबंधो ति। भवाएसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। कालाएसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाओ। [चउत्थो गमओ]
[२३ प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। ___[२३ उ.] पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति के असंज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के बिचले तीन गमकों (४-५-६) में जिस प्रकार कथन किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी तीनों ही गमकों में अनुबन्ध